सनातन की आस्था है छठ महापर्व मनुष्य का प्रकृति से जुड़ाव का पर्व है छठ

जमुई से सरोज कुमार दुबे की रिपोर्ट

जिले के सोनो प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत प्रकृति और मनुष्य के अद्भुत मेल का महापर्व है छठ। यह एकमात्र ऐसा महापर्व है, जिसमें प्रकृति के सौंदर्य और शैली को अपनाकर इस महापर्व को मनाया जाता है। यह पर्व न केवल मनुष्य को प्राकृतिक भावनाओं के साथ जोड़ता है, बल्कि प्रकृति के नजदीक ले जाकर उसे जानने का भी अवसर देता है।चुरहेत निवासी समाजसेवी सह शिक्षक कामदेव सिंह ने महापर्व छठ की महत्ता का बखान करते हुए बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी को मनाया जाने वाला महापर्व छठ पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा हुआ है। यह पर्व शुक्ल पक्ष चतुर्थी से शुरू होकर सप्तमी तक पूरे चार दिन श्रद्धा भाव और समर्पण से मनाया जाता है ।छठ हमें सादगी स्वच्छता और पवित्रता के साथ-साथ सामाजिक समरसता की भी सीख देता है। प्रकृति से जुड़ाव रखने वाला इस महापर्व में कुछ भी दिखावा नहीं होता है ।पर्यावरण संतुलन के लिहाज से इस पर्व का और अधिक महत्व बढ़ जाता है ।यह पर्व सूर्य देवता से संबंधित है और सूर्य समस्त पारितंत्र के लिए अहम माने जाते हैं।सूर्य के प्रकाश से ही समस्त जैव मंडल का अस्तित्व टिका हुआ है।छठ पर्व में हम तालाबों, नदियों,घाटों और अन्य जल स्रोतों की सफाई करते हैं ।सरोवरो और नदियों से मानव जीवन का गहरा रिश्ता रहा है जल संरक्षण और प्राकृतिक स्थानों की सुरक्षा से इस पर्व का संबंध रहा है। हम अस्ताचलगामी सूर्य और उदीयमान सूर्य देवता को छठ पर्व के अवसर पर जो भी समर्पण करते हैं,वे तमाम वस्तुएं उन्ही के द्वारा दी गई होती हैं ।गेहूं के आटे से बना पकवान, केला ,सेब, गन्ना , अदरक ,नारंगी या फिर नारियल,ये तमाम चीजों के बनने पकने और फलने में प्रत्यक्ष रूप से सूर्य देव की असीम कृपा होती है।साफ-सफाई और सामाजिकता से परिपूर्ण यह पर्व हमें आपसी -भाईचारा व सौहार्द की भी सीख देता है।इस पर्व में आधुनिकता नाम की कोई चीज नहीं होती।फैशन और बाह्य आडंबर से यह पर्व अछूता रहा है।चार दिन तक पूरे नेम निष्ठा से मनाया जाने वाले इस पर्व का बहुत ही पुराना इतिहास रहा है ।रामायण काल में माता सीता और महाभारत काल में पांचों भाई पांडव सहित द्रौपदी द्वारा छठ व्रत किए जाने की चर्चा पौराणिक ग्रंथों में की गई है।

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