धनबाद:सुरेन्द्र हरीदास महाराज के सानिध्य में आदित्य नंदेश्वर महादेव मंदिर के तत्वावधान पुटकी में श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस की शुरूआत विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। इसके बाद पूज्य महाराज ने सभी भक्तगणों को गोपाल राधे कृष्ण, गोविन्द, गोविन्द.. भजन श्रवण कराया सुरेन्द्र हरीदास महाराज ने कहा कि भारत की सनातन संस्कृति सबको सुख देती है। वह किसी को क्षति नहीं पहुंचाती। इसी कारण हम सनातनी धर्म के लोग विश्व में सर्वश्रेष्ठ हैं। पूरी विश्व के लोग हमारी संस्कृति व धर्म से प्रभावित हो रहे हैं और इसको अपनाने के लिए आ रहे हैं। महाराज ने वर्तमान समय में सनातनियों में आंखों पर भी आधुनिकता का काला पर्दा पड़ने लगा है। यह एक खतरनाक स्थिति है, जो हमारी संस्कृति व सभ्यता का नष्ट कर रही है। उन्होने कहा कि नंगेपन को आधुनिकता नहीं माना जा सकता है। आधुनिकता विचारों की होनी चाहिए। जो व्यक्ति अपने बड़े, मां-बाप, सम्मान न करता है, अपने देवी-देवताओं के बारे में नकारात्मकता रखता है, वह कैसे आधुनिक हो सकता है। किसी चरित्रहीन व्यक्ति को कभी आधुनिक व अच्छा नहीं माना जा सकता है।
सुरेन्द्र हरीदास महाराज ने कहा कि मद्यपान, जुआ खेलने वाले, परस्त्री गमन करने वालों, अहिंसा करने वालों के घरों में कलयुग रहता है। उन्हने कहा कि यदि हृदय में ईश्वर वास करना चाहते हैं तो हृदय का शुद्ध रखना होगा। महाराज ने कहा कि हम आपको यशस्वी, संस्कारी बनवाने चाहते हैं। हम आपका कल्याण करना चाहते हैं। यदि आप बुद्धिमान हैं, तो अपनी बुद्धि को प्रयोग अपने कल्याण के लिए करें, न की दूसरों को नीचा दिखाने के लिए। महाराज ने कहा कि आपकी सच्ची दौलत आपके सद्कर्म ही साथ जाएंगे। मृत्यु के समय आपको सब यहीं छोड़कर जाना है। हमें जीवन जीने की कोई योजना नहीं बनायी। यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। हमे झूठे स्टेट्स से बचना चाहिए। आपकी असली धन आपके संस्कारवान बच्चे हैं। इसलिए बच्चों को संस्कार, सदाचार, परोपकार, व्यवहार सिखाएं। उन्हें गलत तरीके से धन कमाने के लिए प्रेरित नहीं करना चाहिए। सुरेन्द्र हरीदास महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कल का कथा क्रम याद कराया की राजा परिक्षित को श्राप लगा कि सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु सर्प के डरने से हो जाएंगी। जिस व्यक्ति को यहाँ पता चल जाये की उसकी मृत्यु सातवें दिन हो वो क्या करेगा क्या सोचेगा ? राजा परीक्षित ने यह जान कर उसी क्षण अपना महल छोड़ दिया। राजा परीक्षित ने अपना सर्वस्व त्याग कर अपनी मुक्ति का मार्ग खोजने निकल पड़े गंगा के तट पर। गंगा के तट पर पहुंचकर जितने भी संत महात्मा थे सब से पूछा की जिस की मृत्यु सातवें दिन है उस जीव को क्या करना चाहिए। किसी ने कहा गंगा स्नान करो, किसी ने कहा गंगा के तट पर आ गए हो इससे अच्छा क्या होगा, हर की अलग अलग उपाय बता रहा है।तभी वहां भगवान शुकदेव जी महाराज पधारे, जब राजा परीक्षित भगवान शुकदेव जी महाराज के सामने पहुंचे तो उनको राजा ने शाष्टांग प्रणाम किया। शाष्टांग प्रणाम करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शुकदेव जी महाराज जो सबसे बड़े वैरागी है चूड़ामणि है उनसे राजा परीक्षित जी ने प्रश्न किया कि हे गुरुदेव जो व्यक्ति सातवें दिन मरने वाला हो उस व्यक्ति को क्या करना चाहिए ? किसका स्मरण करना चाहिए और किसका परित्याग करना चाहिए? कृपा कर मुझे बताइये…अब शुकदेव जी ने मुस्कुराते हुए परीक्षित से कहा की हे राजन ये प्रश्न केवल आपके कल्याण का ही नहीं अपितु संसार के कल्याण का प्रश्न है। तो राजन जिस व्यक्ति की मृत्यु सातवें दिन है उसको श्रीमद भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए तो उसका कल्याण निश्चित है। श्रीमद भागवत में 18000 श्लोक, 12 स्कन्द और 335 अध्याय है जो जीव सात दिन में सम्पूर्ण भागवत का श्रवण करेगा वो अवश्य ही मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से प्रार्थना की हे गुरुवर आप ही मुझे श्रीमद भागवत का ज्ञान प्रदान करे और मेरे कल्याण का मार्ग प्रशस्थ करे।भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं ऐसा कर्म करना जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुट्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए इस पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से मानव का यह संकल्प याद दिलाते रहते हैं। भागवत सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत ने कहा है जो भगवान को प्रिय हो वही करो, हमेशा भगवान से मिलने का उद्देश्य बना लो, जो प्रभु का मार्ग हो उसे अपना लो, इस संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा ही दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण है भागवत कथा पृथ्वी के लोगो को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं कथा को सफल बनाने वालो में जितेन्द्र सिंह, गोपाल गौराई, बबलू मोदक, जितेन्द्र शर्मा, कैलाश प्रसाद राय, जीतू यादव, विपिन यादव, हरवंश राजभर, राजेन्द्र पांडे, गणेश यादव,जीत कुमार, राजेश त्रिपाठी, विरेन्द्र पाल, कपिल देव महतो, ताराचंद यादव, कुन्दन शर्मा, पप्पू दशोंधी आदि समस्त पुटकी वासी सेवा में लगे हैं।