मनुष्य के पास ज्यादा पैसों का होना गलत नहीं है परन्तु गलत तरीकों से पैसे कमाना गलत है: सुरेन्द्र हरीदास महाराज



धनबाद:सुरेन्द्र हरीदास महाराज के पावन सानिध्य में रानीबांध पुजा समिती के सहयोग से श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस की शुरूआत विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। जिसके बाद पूज्य महाराज श्री ने सभी भक्तगणों को प्रेम जब अनंत हो गया मेरा रोम रोम संत हो गया” भजन श्रवण कराया।जिस मनुष्य का मन और चित्त निर्मल है भगवान को उनके पास जाने में कोई हिचक नहीं होती है। साधु संत गलत लोगों के लिए ही होते हैं क्यूंकि जो मनुष्य अच्छे हैं वो तो अच्छे हैं और जो गलत लोगों को भी अच्छा बना दें वो ही संत हैं।
मनुष्य के पास पैसों का होना गलत नहीं है परन्तु गलत तरीकों से पैसे कमाना गलत है। तुम्हारी कमाई सदैव धर्मसंगत होनी चाहिए। आज कल के मनुष्य गलत तरीकों से कमाए गए धन को अपनी शान समझते हैं। और बड़े गर्व से बताते हैं कि मेरी सैलरी इतनी है और ऊपर से इतने रुपए और कमा लेता हूँ। हमारे संस्कार हमें बताते हैं कि हम सुयोग्य हैं या अयोग्य हैं। हमारा व्यवहार, बोलना, चलना, कर्म करना ये सब हमें बताता है कि हमारे लक्षण सुयोग्य हैं या अयोग्य हैं।
आज कल के दौर में रिश्ते तब तक निभाए जाते हैं जब तक ज़रूरत होती है। ज़रुरत पूरी होने पर सब छोड़कर चले जाते हैं। रिश्तों से कोई रिश्ता नहीं रखता है, ज़रूरतों से सब रिश्ता रखते हैं। अगर आप किसी की ज़रुरत पूरी करना बंद कर देंगे तो वो आपके पास आना बंद कर देंगे। मनुष्य जीवन की समस्या बाबाओं के पास जाकर जादू टोना कराने से सही नहीं होगी बल्कि बाबाओं के पास जाकर ज्ञान लेकर अपने जीवन में उतारने से होगी। सुरेन्द्र हरीदास ने श्रीमद्भागवत कथा चतुर्थ दिवस के प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए बताया कि वामन अवतार भगवान विष्णु के दशावतारो में पांचवा अवतार और मानव रूप में अवतार था। जिसमें भगवान विष्णु ने एक वामन के रूप में इंद्र की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया। वामन अवतार की कहानी असुर राजा महाबली से प्रारम्भ होती है। महाबली प्रहलाद का पौत्र और विरोचना का पुत्र था। महाबली एक महान शासक था जिसे उसकी प्रजा बहुत स्नेह करती थी। उसके राज्य में प्रजा बहुत खुश और समृद्ध थी। उसको उसके पितामह प्रहलाद और गुरु शुक्राचार्य ने वेदों का ज्ञान दिया था। समुद्रमंथन के दौरान जब देवता अमृत ले जा रहे थे तब इंद्रदेव ने बाली को मार दिया था जिसको शुक्राचार्य ने पुनः अपन मन्त्रो से जीवित कर दिया था।महाबली ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा ने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। बाली भगवान ब्रह्मा के आगे नतमस्तक होकर बोला “प्रभु, मै इस संसार को दिखाना चाहता हूँ कि असुर अच्छे भी होते हैं। मुझे इंद्र के बराबर शक्ति चाहिए और मुझे युद्ध में कोई पराजित ना कर सके।” भगवान ब्रह्मा ने इन शक्तियों के लिए उसे उपयुक्त मानकर बिना प्रश्न किये उसे वरदान दे दिया।
शुक्राचार्य एक अच्छे गुरु और रणनीतिकार थे जिनकी मदद से बाली ने तीनो लोकों पर विजय प्राप्त कर ली। बाली ने इंद्रदेव को पराजित कर इंद्रलोक पर कब्जा कर लिया। एक दिन गुरु शुक्राचार्य ने बाली से कहा अगर तुम सदैव के लिए तीनो लोकों के स्वामी रहना चाहते हो तो तुम्हारे जैसे राजा को अश्वमेध यज्ञ अवश्य करना चाहिए।
बाली अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए यज्ञ की तैयारी में लग गया। बाली एक उदार राजा था जिसे सारी प्रजा पसंद करती थी। इंद्र को ऐसा महसूस होने लगा कि बाली अगर ऐसे ही प्रजापालक रहेगा तो शीघ्र सारे देवता भी बाली की तरफ हो जायेंगे।इंद्रदेव देवमाता अदिति के पास सहायता के लिए गए और उन्हें सारी बात बताई। देवमाता ने बिष्णु भगवान से वरदान माँगा कि वे उनके पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लेकर बाली का विनाश करें। जल्द ही अदिति और ऋषि कश्यप के यहाँ एक सुंदर बौने पुत्र ने जन्म लिया। पांच वर्ष का होते ही वामन का जनेऊ समारोह आयोजित कर उसे गुरुकुल भेज दिया।इस दौरान महाबली ने 100 में से 99 अश्वमेध यज्ञ पुरे कर लिए थे। अंतिम अश्वमेध यज्ञ समाप्त होने ही वाला था कि तभी दरबार में दिव्य बालक वामन पहुँच गया।
महाबली ने कहा कि आज वो किसी भी व्यक्ति को कोई भी दक्षिणा दे सकता है। तभी गुरु शुक्राचार्य महाबली को महल के भीतर ले गये और उसे बताया कि ये बालक ओर कोई नहीं स्वयं भगवान विष्णु हैं वो इंद्रदेव के कहने पर यहाँ आए हैं और अगर तुमने इन्हें जो भी मांगने को कहा तो तुम सब कुछ खो दोगे।महाबली अपनी बात पर अटल रहे और कहा मुझे वैभव खोने का भय नहीं है बल्कि अपन प्रभु को खोने का है इसलिए मै उनकी इच्छा पूरी करूंगा।
महाबली उस बालक के पास गया और स्नेह से कहा “आप अपनी इच्छा बताइये”।उस बालक ने महाबली की और शांत स्वभाव से देखा और कहा “मुझे केवल तीन पग जमीन चाहिए जिसे मैं अपने पैरों से नाप सकूं”।
महाबली ने हँसते हुए कहा “केवल तीन पग जमीन चाहिए, मैं तुमको दूँगा।”
जैसे ही महाबली ने अपने मुँह से ये शब्द निकाले वामन का आकार धीरे धीरे बढ़ता गया। वो बालक इतना बढ़ा हो गया कि बाली केवल उसके पैरों को देख सकता था। वामन आकार में इतना बढ़ा था कि धरती को उसने अपने एक पग में माप लिया।
दुसरे पग में उस दिव्य बालक ने पूरा आकाश नाप लिया। अब उस बालक ने महाबली को बुलाया और कहा मैंने अपने दो पगों में धरती और आकाश को नाप लिया है। अब मुझे अपना तीसरा कदम रखने के लिए कोई जगह नहीं बची, तुम बताओ मैं अपना तीसरा कदम कहाँ रखूँ।
महाबली ने उस बालक से कहा “प्रभु, मैं वचन तोड़ने वालों में से नहीं हूँ आप तीसरा कदम मेरे शीश पर रखिये।”भगवान विष्णु ने भी मुस्कुराते हुए अपना तीसरा कदम महाबली के सिर पर रख दिया। वामन के तीसरे कदम की शक्ति से महाबली पाताल लोक में चला गया। अब महाबली का तीनो लोकों से वैभव समाप्त हो गया और सदैव पाताल लोक में रह गया। इंद्रदेव और अन्य देवताओं ने भगवान विष्णु के इस अवतार की प्रशंशा की और अपना साम्राज्य दिलाने के लिए धन्यवाद दिया।कथा सफल करने वाले में अशोक गुप्ता सधर्मपत्नी सुधा गुप्ता, मुरली मनोहर अग्रवाल, विरेन्द्र भगत केदारनाथ मित्तल, श्याम पांडे, रमेश राय,मिहिर दत्ता टिंकू सरकार पप्पू सिंह, रंजीत जायसवाल अमृत सिंह गोपालनाथ नंदू रजक प्रकाश दे झूलन सिंह राजेन्द्र रजक गोपाल नाग सुदीप दत्ता मोनू दीपक, रितेश , संतोष आदि सेवा में सक्रिय हैं।

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