मैं जन्‍मदिन कभी नहीं मनाता हमने झारखंड के लिए अलग लड़ाई लड़ी लड़कर झारखंड लिया : शिबू सोरेन


झारखंड में गुरुजी के नाम से मशहूर और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की. 11 जनवरी को पैदा हुए शिबू सोरेन अबतक तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष हैं. साल 2005 में वह पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे. पिता की मौत के बाद लकड़ी बेचकर घर चलाने वाले शिबू सोरेन एक आदिवासी नेता हैं.
बिहार से अलग होने के बाद झारखंड को एक नई पहचान मिली. इसके साथ ही यहां की राजनीति में भी उथल-पुथल मचती रही. कभी किसी पार्टी ने सरकार बनाई तो कभी राष्ट्रपति शासन लागू रहा. इसी बीच झारखंड को एक ऐसा मुख्यमंत्री मिला जो यहां का सबसे बड़ा चेहरा बन गया.
*शिबू नहीं मनाते जन्‍मदिन*
शिबू सोरेन का कहना है कि मैं जन्‍मदिन कभी नहीं मनाता. हां, लोग मुझसे बहुत स्नेह रखते है. आते हैं मेरे पास, खुशी मनाते है. मुझे बहुत अच्छा लगता है. झारखंड के लोगों का प्यार मिला है मुझे. और अच्छा लगेगा, जब मेरा सपना पूरा होगा. हमने झारखंड के लिए अलग लड़ाई लड़ी. लड़कर झारखंड लिया. बहुत साथी थे साथ में. कुछ का साथ छूट गया.
*शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन*
सोरेन का राजनीतिक जीवन उतार-चढाव भरा रहा है. विषम परिस्थितियों में भी वे संथाल परगना की जनता में लोकप्रिय बने रहे. बाद में इस क्षेत्र के लोग गुरुजी के संबोधन से उन्हें सम्मानित करने लगे. वर्ष 1977 में टुंडी विधानसभा में चुनाव हारने के बाद सोरेन ने हार नहीं मानी और उन्होंने पूर्ण रुप से संथाल परगना को अपनी कर्मभूमि बनाकर झारखंड अलग राज्य निर्माण के आंदोलन का अलख जगाते रहे.
सोरेन 1980 में मध्यावधि चुनाव में दुमका (सु) लोकसभा क्षेत्र में जीत दर्ज कर समूचे देश मे अलग झारखंड राज्य निर्माण के मुद्दे को स्थापित करने में सफल हुए.
वर्ष 1980 में विधानसभा चुनाव में भी संथाल परगना के 18 में से नौ सीटों पर झामुमो के प्रत्याशियों के निर्वाचित होने से बिहार की राजनीति मे हलचल पैदा हो गई. हालांकि 1984 के लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन दुमका में कांग्रेस के पृथ्वीचन्द्र किस्कू से पराजित हो गए लेकिन 1985 मे हुए विधानसभा चुनाव में शिबू सोरेन के नेतृत्व में संथाल परगना में झामुमो का जलवा बरकरार रहा.
गुरुजी जामा से विधायक चुने गए और उतार चढ़ाव के बावजूद भी उन्होंने संथाल परगना को नहीं छोड़ा. वर्ष 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में गठित विपक्षी गठबंधन के साझा उम्मीदवार के रुप में शिबू सोरेन दुमका से पुन: सांसद बने जबकि राजमहल से झामुमो के ही साईमन मरांडी निर्वाचित हुए.
वर्ष 1990 में सम्पन्न बिहार विधानसभा चुनाव में भी संथाल परगना में झामुमो सबसे बडी पार्टी बनकर उभरी. वर्ष 1991 और 1996 में सोरेन दुमका लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित होते रहे. वर्ष 1998 में सोरेन दुमका में तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता बाबूलाल मरांडी से पराजित हो गए. इसके बाद उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनने का मौका मिला लेकिन न्यायालय ने उनके निर्वाचन को रद्द कर दिया.
वर्ष 1999 में दुमका में मरांडी के मुकाबले झामुमो ने दिसोम गुरु की धर्मपत्नी रुपी सोरेन को मैदान में उतारा. मरांडी महज 4500 मतों से ही यह चुनाव जीत पाए. सोरेन वर्ष 2002 में झारखंड से राज्यसभा के सदस्य चुने गए. हालांकि उनकी सफलता में भाजपा का भी सहयोग रहा था. मरांडी के 15 नवंबर 2000 को राज्य का मुख्यमंत्री बनने के कारण दुमका लोकसभा सीट रिक्त हुई थी लेकिन इस सीट पर उप चुनाव वर्ष 2002 में कराया गया और एक बार फिर शिबू सोरेन दुमका (सु) संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए. इस उपचुनाव में झामुमो के सोरेन ने भाजपा के रमेश हेम्ब्रम को लगभग 94 हजार से अधिक मतों से हराया था.
वर्ष 2004 में एक बार फिर सोरेन भाजपा के सोनेलाल हेम्ब्रम को लगभग 1.15 लाख से अधिक मतों से पराजित कर दुमका से लोकसभा के सदस्य चुने गए. वर्ष 2009 के जनवरी में सोरेन तमाड़ विधानसभा उपचुनाव में राजा पीटर से पराजित हो गए और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गवांनी पडी. इसके बाद वर्ष 2009 में ही लोकसभा चुनाव के साथ ही जामताड़ा विधानसभा का उपचुनाव हुआ और दोनों में सोरेन विजई रहे. बाद में सोरेन ने जामताड़ा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और लोकसभा की सदस्यता बरकरार रखी. सोरेन अब तक तीन बार राज्य में मुख्यमंत्री बने हैं और तीनों ही बार वह लोकसभा के सदस्य रहते हुए ही मुख्यमंत्री बने हैं.
*राजा पीटर ने उपचुनाव में था हराया*
2009 के उपचुनाव में तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से शिबू सोरेन झारखंड पार्टी के उम्मीदवार गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर से 9000 से ज्यादा वोटों से हार गए थे और इस कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था. जेडीयू विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के बाद यहां उपचुनाव कराया गया था. मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए गुरु जी को यह चुनाव जीतना जरूरी था. गौरतलब है कि गुरुजी उस समय दुमका से सांसद थे.
सोरेन मनमोहन सरकार में कोयला मंत्री भी रहे. उन्हें अपने तीस साल पुराने केस की वजह से ये पद छोड़ना पड़ा था. जिसकी वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा था. जेल से छूटने के बाद उन्हें फिर से कोयला मंत्रालय दे दिया गया.
*शिबू सोरेन का बचपन*
सोरेन का जन्म वर्तमान झारखंड के रामगढ़ में हुआ था. उस वक्त ये बिहार के अंदर आता था. उन्होंने यहां से अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई के दौरान उनके पिता की हत्या हो गई. इसके बाद अपने परिवार की मदद करने के लिए उन्होंने लकड़ी बेचना शुरू किया. उनकी शादी रूपी किस्कू से हुई थी.
इनके कुल चार बेटे-बेटी हैं, जिसमें सबसे बड़े दुर्गा सोरेन थे. हेमंत सोरेन और बसंत सोरेन का जन्म हुआ. उनकी एक बेटी अंजली सोरेन भी है.

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