लालू का कैसे हुआ चारा घोटाला मामले की शुरुआती जांच जानिए आजाद दुनियां के साथ इस स्टोरी के माध्यम से

jharkhand:देश के सबसे बड़े बिहार का चर्चित पशुपालन घोटाला का आज तक कार्रवाई चल रही है. 25 साल से ऊपर से यह मामला चल रहा है. इस चर्चित घोटोले का खुलासा निवर्तमान चाईबासा डीसी अमित खरे को जाता है. इसका खुलासा 1996 में हुआ था. इस बारे में खुद अमित खरे ने अपने एक लेख में किया है. इसके सहयोग से इस घोटाले से जुड़े कुछ अहम बिंदू को आप को बता दू . जाने क्या-क्या खुलासा किया गया है

बिल देखकर चौंक गए थे खरे

लेख में कहा है कि 27 जनवरी, 1996 की वो ठंडी सुबह जब मैंने ब्रिटिश जमाने में बने उस भवन के एक छोटे से कोने में बने चाईबासा ट्रेजरी विभाग, पशुपालन विभाग का कार्यालय और जानवरों के फार्म्स में रेड किया. मैंने विभाग के सभी बिल को जांचना शुरू किया. मैं चौंक गया सभी बिल में एक ही राशि थी. वो थी 9.9 लाख की. बिल एक ही सप्लायर की थी. पहली नजर में मुझे लगा कि मामले में जरूर कुछ-ना-कुछ गड़बड़ है. उसी वक्त मैंने जिला पशुपालन पदाधिकारी और विभाग से जुड़े कर्मियों को उनका पक्ष जानने के लिए बुलाया.

स्टेट बैंक को आदेश दिया विभाग के किसी भी बिल का भुगतान न करें

खरे ने कहा कि पशुपालन विभाग के सभी कर्मी कार्यालय छोड़ कर भाग गये हैं. तब मैंने तय किया कि मैं खुद अपने दंडाधिकारियों के साथ उनके कार्यालय में जाऊंगा और जांच करूंगा. मैं पशुपालन विभाग का कार्यालय पहुंचा. मैंने जो वहां देखा उससे मैं हतप्रभ था. वहां मुझे कैश, बैंक ड्राफ्ट्स और बड़ी संख्या में फर्जी बिल मिले. ऑफिस को देख कर कोई भी कह सकता था कि यहां काम करने वाले कर्मी जल्दबाजी में यहां से भागे हैं. दोपहर के 12 बज रहे होंगे. मैंने अपने दंडाधिकारियों को पशुपालन विभाग और उससे जुड़े सभी डिपार्टमेंट को सील करने को कहा. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया कि वो पशुपालन विभाग के किसी भी बिल का भुगतान ना करें. पुलिस थानों को निर्देश दिया कि सारे रिकॉर्ड्स को सुरक्षित रखा जाए ताकि फर्जी निकासी करने वालों को रिकॉर्ड्स खत्म करने का काई मौका ना मिले.

जब मैंने पहला एफआईआर दर्ज कराया

अमित खरे के अनुसार उन्होंने सभी पहलुओं को जांच की. एजी कार्यालय और राज्य के वित्त विभाग से मिली जानकारी बता रही थी कि पशुपालन विभाग के साल भर के बजट से भी ज्यादा की राशि की निकासी हो चुकी थी. मैंने मामले से जुड़ा पहला एफआईआर दर्ज कराया. जिसे बाद में जा कर नाम मिला “पशुपालन घोटाला”. आगे चलकर देवघर से भी इससे जुड़ा एक और मामला सामने आया. देवघर के ट्रेजरी से गलत तरीके से पैसे की निकासी हुई थी.
अमित खरे ने लेख में कहा है कि घटना के बाद पन्नों पर पन्ने लिखे जाने लगे कि कैसे फर्जी बिल बना कर सप्लाई करने वालों ने पशुपालन विभाग के कर्मियों की मिलीभगत से राशि की निकासी की. कैसे कैश और बैंक ड्राफ्ट्स विभागों में रेड के दौरान मिलने लगे. कैसे घोटाले के संरक्षकों ने प्रशासनिक और आर्थिक व्यवस्था को ध्वस्त कर इस घोटाले को अंजाम दिया गया. ये सारा खेल जानवरों को चारा देने के नाम पर खेला जा रहा था. ये सारा खेल उस वक्त के दक्षिण बिहार के जिलों में खेला जा रहा था.

अगर करियर के बारे में सोचता तो इस घोटोले का उजागर नहीं होता

खरे ने लेख कई खुलासे किए है. उन्होंने बताया कि लोगों ने मुझसे पूछा- क्या आपको अपने करियर और परिवार की चिंता नहीं है? कुछ ने तो ये भी कहा कि पुलिस आपको इस केस में फंसा देगी. सच कहूं तो जब मैंने इसकी शुरुआत की तो ऐसा कोई ख्याल मेरे मन में आया ही नहीं. मैं जब आईआईएम अहमदाबाद का छात्र था तो वहां मेरे एक टीचर थे प्रोफेसर कुछल. वो हमेशा कहा करते थे “बहुत अधिक विश्लेषण निर्णय को विकलांग बना देता है” (too much of analysis leads to decision paralysis). मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अपने करियर और परिवार के बारे में सोचने में समय जाया नहीं किया. अगर मैं ये सब सोचता तो मैं पशुपालन घोटाला की जांच करने का निर्णय ही नहीं ले पाता. तो मैंने ऐसा किया क्यों ? जवाब है कि जितने लोग सिविल सर्विसेज से जुड़ते हैं वो एक सपने के साथ जुड़ते हैं. सपना होता है एक नया भारत बनाने का और बतौर डीसी (Deputy Commissioner) जो किसी जिले का प्रशासनिक नेतृत्वकर्ता होता है, मेरी यह ड्यूटी थी कि मैं ऐसा करूं. लेकिन मैंने ये सारा कुछ अकेले नहीं किया. मीडिया की इसमें काफी भागीदारी रही. हिंदी और अंग्रेजी मीडिया ने खबर को ना सिर्फ राज्य में बल्कि देश भर में प्रकाशित किया. यह सही है कि मैं एक लोकल हीरो की तरह देखा जाने लगा. ये भी काम मीडिया की ही वजह से हुआ था.

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अकेला नहीं, कई लोगों की वजह से हुआ इसका पर्दाफाश

लेख में अमित खरे बताते हैं कि वे अकेला नहीं था. ऐसे कई लोग थे जिनकी वजह से चारा घोटाले का पर्दाफाश हो सका. जैसे लाल श्यामा चरण नाथ. वो एडिशनल डीसी थे. उन्होंने बड़ी बारिकी से ट्रेजरी के सभी अकाउंटों की जांच की. वीएस देशमुख तत्कालीन एसपी जिन्होंने तुरंत सभी थानों को अलर्ट किया. उन्हीं की वजह से सबूत सुरक्षित रहे. किसी के हाथ नहीं लगे. सदर एसडीओ फीडीलिस टोप्पो, बिनोद चंद्र झा इन्होंने पशुपालन विभाग के सभी डिपार्टमेंट को सील करने का काम किया. तत्कालीन सभी बीडीओ और सीओ जिन्होंने घोटाले से संबंधित सभी कागजातों को इकट्ठा किया. इनमें से कई अधिकारी राज्य प्रशासनिक सेवा से जुड़े हुए थे. बावजूद इसके बिना डरे इन्होंने राज्य को बेहतर बनाने के लिए घोटाले का पर्दाफाश करने का काम किया.

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