*आचार्य पंडित राज कुमार शास्त्री आध्यात्मिक कथा ब्यास सह ज्योतिषाचार्य*
भगवान #शंकर और #पार्वती जी के विवाह का प्रसंग बहुत मंगलकारी है। जो इस कथा को सुनता है, उसके मनोरथ पूर्ण होते हैं। शिव पुराण में इसकी अति महत्ता बताई गई है। भगवान शंकर बारात के साथ हिमाचल के यहां जाते हैं। हिमाचल उनकी आवभगत करते हैं। बारात तो विलक्षण थी। ऐसी बारात न किसी ने देखी और न देखेंगे। मदमस्त शिव के गण। कोई मुखहीन। कोई विपुल मुख। भस्म लगाए हुए शंकरजी। शंकर जी दूल्हा थे। लेकिन सांसारिक नहीं। वह अविनाशी और प्रलंयकर के रूप में थे। सब कहने लगे, दूल्हा भी कभी ऐसा होता है क्या। गले में सर्पहार। शरीर पर भस्म लपेटे हुए। उनको क्या पता था कि वह दूल्हे के नहीं बल्कि साक्षात शंकर जी के दर्शन कर रहे हैं। तीन दिन तक बारात ने वहां प्रवास किया। अब तो बारात कुछ घंटों की होती है, लेकिन शास्त्रीय परंपरा के अनुसार तब बारात कई दिन ठहरती थी। सारे मंगल कार्य विधि विधान से होते थे।
पार्वती जी के साथ सखियां हंसी-ठिठोली कर रही हैं। सखियां मंगलगान कर रही हैं। सब लोग शंकर जी की जय-जयकार कर रहे हैं। फिर आया फेरों का वक्त। शंकर जी और गौरी फेरों के लिए बैठे। पंडितों ने शंकर जी से कहा कि अब आप संकल्प कीजिए। महासंकल्प लेने वाले शंकर जी आज स्वयं संकल्प कर रहे हैं। जिनके संकल्प मात्र से ही सारे कार्य सिद्ध होते हैं। आज उनको पंडित कह रहे हैं कि आप संकल्प कीजिए। शंकर जी संकल्प को उद्यत हुए, तभी पंडितों ने उनसे पूछा…..आपका गोत्र क्या है? शंकरजी हैरान। कैसे बताएं कि क्या है गोत्र। कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। सृष्टि के जन्म, पालन और संहार में लगे रहे। शंकर जी का त्रिलोक ही गोत्र है। शंकर जी ने ब्रह्मा जी और विष्णु को देखा। दोनों ने शंकर जी को देखा और हंसने लगे। पंडित जी समझ गए कि उनसे भूल हो गई। पंडित जी ने फेरे कराए और वहीं पर जयमाल की रस्म हुई। ( जयमाला कराने का शास्त्रीय विधान फेरों के बाद का है)।पंडित जी ने बारी-बारी से वचन कराए। शंकर और पार्वती जी ने पति धर्म और पत्नी धर्म का पालन करने के लिए वचन भरे।
इस प्रकार भगवान शंकर का विवाह पार्वती जी के साथ संपन्न हुआ। बारात जब भी विदा की अनुमति मांगती, हिमाचल रोक देते। अभी थोड़ा रुको न…अभी थोड़ा रुको न..। तीन दिन बाद बारात की तरफ से शंकर जी ने अनुमति मांगी तो हिमाचल ने और रोक लिया। हिमाचल बारात को नहीं रोक रहे थे, इसके पीछे उनका पिता मोह था। वह अपनी लाडली पार्वती को विदा करने का साहस नहीं कर पा रहे थे। करते भी कैसे। पिता का मोह होता ही ऐसा है। बाबुल के घर से विदाई के वक्त बहुत भावुक होते हैं।
#मेना ने #पार्वती जी को समझाया #पत्नी #धर्म
अंतत: वह विदाई की बेला आई। पार्वती जी बारी-बारी से पिता और परिजनों से गले मिली। सबकी आंखें नम थीं। हिमाचल का तो रो-रोकर बुरा हाल था। मां मेना भी अपने को संभाल नहीं पा रही थीं। वह पार्वती जी को पकड़कर अलग ले गईं। इस विदाई की बेला में घर-संसार के लिए शिक्षाप्रद सीख निकली। मेना ने पार्वती जी को पति धर्म और ससुराल धर्म की शिक्षा दी। मेना ने कहा कि आज से तुम्हारा ससुराल ही घर है। कभी अपने पति की अवहेलना न करना। सदा मिलकर चलना। घर में सभी बंधु बांधव का सम्मान करना। अब तुम्हारा यही संसार है। मेना ने कहा कि स्त्री के लिए पति के समान कोई नहीं है। यद्यपि माता-पिता अपनी संतान के बड़े शुभचिंतक होते हैं, लेकिन वह मुक्ति नहीं दे सकते। इस संसार में चार वस्तु सुख प्रदान करती हैं- पहला पति, दूसरा धर्म, तीसरी स्त्री और चौथा संतोष। इन चारों का ही पालन करना। स्त्री से दो कुलों की रक्षा होती है। पिता के कुल की तो वह रक्षा करती ही है, पति के कुल की भी रक्षा करती है। इसलिए, तुम दोनों कुलों की रक्षा करना। हमारा मान-सम्मान तुम्हारे हाथ में है। इस तरह, हिमाचल और मेना ने पार्वती जी को विदा किया।
#शंकर जी की सीख
–विवाह आनंदोत्सव है। इसलिए, वह सारी रस्में शंकर जी के विवाह में हुईं जो आज होती हैं।
-विवाह के वक्त बुरा नहीं मानना चाहिए। हंसी ठिठोली को उसी रूप में लेना चाहिए। शंकर जी के विवाह में भी यही हुआ।
-संसार का दूल्हा खूब श्रृगांर करता है, लेकिन जगत का दूल्हा ( शंकर) भस्म लगाए जाता है। यही शाश्वत है। सत्य है।
-घर और परिवार की जिम्मेदारी स्त्री की होती है। इसलिए मेना उनको समझाती है कि घर कैसे चलाना है।
-यदि मां अपनी कन्या को शिक्षा दे तो इससे दोनों कुलों के मान सम्मान की रक्षा होती है। पार्वती जी को मेना माँ ने यही सीख दी।

