आत्महत्या तथा इसकी रोकथाम :- भारत में तत्काल आवश्यक श्रीयम त्रिपाठी



एक रिपोर्ट के मुताबिक हर एक घंटे में एक छात्र आत्महत्या कर रहा है। इसका कारण पता करना अब हमारी जिम्मेदारी है। कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में हम अपने बच्चों को प्रताड़ित कर रहे हैं, या तो वह प्रताड़ना नौकरी के लिए हो या पढ़ाई के लिए हो या फिर शादी करने के लिए। इस पर रोक लगाना अब हमारी जिम्मेदारी है। ज्यादातर विद्यार्थी चाहते हैं कि जिनसे उनका दोस्ती स्कूली जीवन में था, उन्हीं के साथ वे जिंदगी भर रहे। लेकिन जब वे एक बार कॉलेज में जाते हैं तो उनका पुराना दोस्ती टूट जाती है। कई बातें ऐसी होती है जो भी केवल अपने दोस्तों से या परिजनों को ही बता पाते हैं। परिवार से दूर होने पर वह फोन पर अपना हाल भी पूरी तरह से ठीक से बयां नहीं कर पाते है। जब मां का कॉल आता है तो वे ये पूछती है की पिछले परीक्षा में कम नंबर आए थे इस बार कितने आए है। जिस बच्चे को इतना अलग कर दिया गया, उससे हम देश जोड़ने की बात कैसे सोच सकते है। परिवार में भी कई ऐसे सदस्य होते है जिसने तानों से भरी आशीर्वाद भेंट की हो। बाहर रह कर पढ़ने वाले को छात्र को खाने तथा सोने को आदतों में भी भरी बदलाव आते है। जब वे घर पर रहते है तो वे निश्चित होकर कभी भी खाना खा कर सो जाते है, मगर जब वे अपने इस कॉलेज के प्रेशर में आते हैं तो उनको सोने के समय अनिद्रा तथा भोजन के समय अरुचि महसूस होने लगती है। इसका नाता सीधे अवसाद तथा डिप्रेशन के शुरुवाती लक्षणों से मिलती है। आम तौर पर विद्यार्थियों को कई ऐसे दोस्त होते है जो नशा करते है, जिसे देख कर वे आकर्षित होते है तथा नशा के आदि हो जाते है। इस समय विद्यार्थियों को अपने सभी परेशानियों का हल सिर्फ शराब, सिगरेट तथा अन्य नशीली पदार्थो को मानते है। विद्यार्थियों को ये पता भी होता है किए नुकसानदेह है लेकिन दूसरों को देख कर ये इसके आदि होते जाते है। जिंदगी के इस जंग में भी ये ऐसे गलत कदम उठाने को मजबूर हो जाते है जो इन्हें मौत के मुंह तक में ढकेल सकती है। मगर ये बाइक के स्टंट, ऊंची पहाड़ों पर जाकर खतरनाक सेल्फी लेना तथा ड्रग्स लेने को मजबूर हो जाते है। पुरानी पसंदीदा चीजों से दूरी बनाने में और पुराने दोस्त तथा अपने घर रिश्तेदारों से भी आज कल के छात्र दूरी बनाकर रखने में ही अपनी भलाई समझते है। इसका कारण यह है की कुछ लोगों के तानों से उनके जिंदगी में रुकावट आ रही है मां पिताजी के आंखो मे देखा गया सपना जब वो पूरा नहीं कर पाते तो उन्हें आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर होना पढ़ता है। इतने के बाद जब वो अपने पुरानी जिंदगी को याद करते है तथा उसके बारे में सोचते है या यूं कहें तो दुबारा सब ठीक करना चाहते हैं। लेकिन ऐसा कर पाने में जब वे असफल होते है तो वे अवसाद में चले जाते ही। अपने बातों को दूसरों से बयां नहीं कर पाना और देखते ही देखते अकेले रहना और अवसाद के यात्रा में पूर्णतः अपना सब कुछ खोते चले जाते है। और देखते ही देखते ये अवसाद इन्हे अंदर ही अंदर मार देती है, तभी मन में आत्महत्या जैसे हृदय विदारक विचार उत्पन्न होते हैं , और वे आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते ही, तथा अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेते है।
श्रीयम त्रिपाठी “आदियोगी”
छात्र नेता
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

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