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पाटन (गुजरात)। पटोला साड़ियों का प्राचीन शिल्प 11 वीं शताब्दी का है और पाटन में साल्वे परिवार पीढ़ियों से शिल्पकला की अपनी विरासत को आगे बढ़ा रहा है। सोलंकी वंश के राजा कुमारपाल के पास पटोला बुनकरों के लगभग 700 परिवार थे, जो जालना (महाराष्ट्र) से उत्तरी गुजरात के पाटन में बसने के लिए चले गए थे, और साल्वे उनमें से एक हैं।
पटोला रेशम का इतिहास
एएनआइ से बात करते हुए, परिवार के सबसे बड़े सदस्यों में से एक, 68 वर्षीय भरत साल्वे ने पटोला रेशम का इतिहास सुनाया। साल्वे ने कहा, ‘यह पटोला करघा 11वीं शताब्दी में यहां आया था, जब राजा अपनी पूजा के लिए प्रतिदिन पटोला का उपयोग करना चाहता था। वह एक जैन था। हम अभी भी पारंपरिक प्राकृतिक रंगों का उपयोग करना जारी रखे हुए हैं।’
साल्वे ने कहा, ‘पटोला अन्य रेशम से अलग है। यह एक ऐसी साड़ी नहीं है, जिसमें मुद्रित डिजाइन होता है। इसके बजाय, यह इतनी बारीकी से बंधा और रंगा जाता है कि एक डिजाइन बन जाता है।’
पटोला साड़ी की कीमत
एक असली पटोला साड़ी 1.5 लाख रुपये से शुरू होती है और पेचीदगियों के आधार पर इसकी कीमत 6 लाख रुपये तक हो सकती है।
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