धनबाद : चुनाव जीतने के बाद अपेक्षा से अधिक सीट लेकर सत्ता में आइ झारखंड मुक्ति मोर्चा अर्थात इंडिया गठबंधन का तेवर अचानक बदल गया है। सत्ता में आतें हीं सरकार ने न केवल मइया सम्मान योजना के नियमों में बदलाव शुरू कर दी है बल्कि सरकार ने अपनी सूर बदल दी है। अब सूर में चुनाव की पहले वाली बात नहीं रही। और हो भी क्यों नहीं फिर से आई सरकार की स्थिति काफी बेहतर है। इस बार झामुमो कुल 43 में से 34 सीटें जीत कर चुनाव में अपनी जोरदार प्रदर्शन दिखाया है। जबकि कांग्रेस ने 16 , आर जे डी ने 4 तथा भाकपा (माले) ने दो सीट जीता है। स्थिति यह है कि चुनाव परिणाम देखकर जहां झामुमो का मनोबल बढ़ा है वहीं भाजपा इस बात पर चिंतित है कि उसके लाख प्रयाश के बाद भी तीन तीन पूर्व मुख्यमंत्री की तमाम योजनाएं धरी की धरी रह गई। और जेल काट कर आने के बाद भी मुख्यमंत्री हेमंत की मइया सम्मान योजना की जादुई चिराग ने कमाल कर के दिखा दिया। इससे यह साबित हुई कि जनता भाषण में नहीं रासन में विश्वास रखती है। मतदाताओं ने भाजपा की थोथी दलील गो गो को दरकिनार कर माइया को वेटेज दे दिया। अब देखना यह है कि आगे स्थिति क्या रहती है वैसे इस बार झारखंड विधान सभा चुनाव भाजपा के शतरंजी चेक है कि अगर वह नहीं चेती तो भविष्य में चुनवी परिणाम में उसकी स्थिति और भी खराब हो सकती है। यह परिणाम झामुमो के लिए भी इतराने वाली नहीं क्यों कि अगर हेमंत सोरेन अपनी अकड़ से बाज नहीं आएं तो चम्पई व सीता के बाद पार्टी के और भी कुनबे बाहर निकल कर झामुमो की चिंता और भी बढ़ा सकतें हैं जो कि झामुमो के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है। इस प्रकार इस बार झारखंड की चुनावी परिणम से जरूरत है भाजपा हीं नहीं झामुमो को भी सबक लेने की।
तुम्हारी जीत से ज्यादा मेरी हार के चर्चे यह कहावत सटीक साबित हुआ
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