लालू यादव के फटे नोट नहीं चलायेगी कांग्रेस, सीट से ज्यादा जीत को तरजीह…
बिहार: बिहार चुनाव के कांग्रेस के सह- प्रभारी शाहनवाज ने कहा था कि इसबार कांग्रेस पार्टी लालू यादव के फटे नोट नहीं चलायेगी.मतलब साफ़ था, इसबार कांग्रेस पार्टी उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ना चाहेगी ,जिसपर जीत की ज्यादा संभावना हो.दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है. पार्टी बिहार के दलित वोट बैंक के साथ-साथ जीत वाली सीटों को तरजीह देने पर विचार कर रही है.पार्टी बिहार में सीटों की संख्या से ज्यादा जीत को तरजीह देगी. वह उन सीटों को लड़ने का प्रयास करेगी, जहां मजबूत हो. इसके लिए सीटों की अदला-दली भी हो सकती है.
सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस के इंटरनल सर्वे में बिहार की 50 सीटों पर पार्टी मजबूत स्थिति में है. उन सीटों को पार्टी अपना कैंडिडेट्स उतारने का प्रयास करेगी.बिहार में कांग्रेस का फोकस दलित वोट बैंक पर है. इसी रणनीति के तहत इस साल अब तक राहुल गांधी दो बार बिहार का दौरा कर चुके हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे 22 फरवरी को बक्सर में जनसभा करेंगे।.इसके बाद 28 फरवरी को पश्चिम चंपारण में भी उनकी सभा की तैयारियां की जा रही है. उनकी सभाओं का नाम जय बापू, जय भीम, जय संविधान रखा गया है. इसके बाद मार्च में प्रियंका गांधी बिहार आ सकती हैं.
महागठबंधन यानी RJD-कांग्रेस में दलित नेताओं की कमी है. पासवान समाज से चिराग पासवान और मांझी समाज से जीतन राम मांझी बड़े नेता हैं, लेकिन दोनों NDA का हिस्सा हैं. इन दोनों जातियों के अलावा भी राज्य में दलित समाज का बड़ा वर्ग है, लेकिन कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन में कोई बड़ा दलित नेता नहीं है. कांग्रेस इसी समाज में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है.
विधानसभा चुनाव से 8 महीने पहले कांग्रेस ने सीनियर लीडर मोहन प्रकाश की जगह राहुल गांधी के भरोसेमंद कृष्णा अल्लावरू को प्रभारी बना दिया है. इसे पार्टी की नई रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.कृष्णा अल्लावरू की गिनती राहुल गांधी के भरोसेमंद नेता के रूप में होती है. यह उनसे तब से जुड़े हैं, जब से वह यूथ कांग्रेस के प्रेसिडेंट थे. इन्हें राहुल की कोर टीम का हिस्सा माना जाता है.राहुल गांधी जब से कांग्रेस के मेनस्ट्रीम में आए हैं, तब से अपने पसंद के नेताओं को ऊपर करने की कोशिश में लगे हैं. कृष्णा की गिनती लो प्रोफाइल में रहकर बेहतर काम करने वाले युवा नेता के रूप में है. कृष्णा अल्लावरू पिछले 8-10 वर्षों से संगठन में एक्टिव हैं. ऐसे में आलाकमान की तरफ से इनका प्रमोशन तय माना जा रहा था.
कृष्णा अल्लावरू के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस को पॉकेट पार्टी की छवि से बाहर निकालना होगा. फिलहाल बिहार में आम धारणा है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कैंडिडेट सिलेक्शन तक सबकुछ लालू करते हैं. जो राजद सुप्रीमो चाहते हैं कांग्रेस के भीतर वही होता है..बिहार में आज कांग्रेस की स्थिति यह है कि पिछले 2 साल में पार्टी के 2 प्रदेश प्रभारी बदले गए, लेकिन अध्यक्ष अपनी कमेटी का गठन नहीं कर पाए. अभी प्रदेश अध्यक्ष के अलावा मीडिया प्रभारी और कोषाध्यक्ष के अलावा कोई भी पद फंक्शनल नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह की बार-बार कोशिश करने के बाद भी कमेटी का गठन नहीं हो पाया है.
2020 में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी, जिसमें से 19 सीटों पर जीत मिली। विधानसभा चुनाव के बाद RJD के अंदर से आवाज आई थी कि कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं दी गई होती तो महागठबंधन का प्रदर्शन बेहतर होता और तेजस्वी मुख्यमंत्री बनने से नहीं चूकते.विधानसभा चुनाव के बाद हुए उपचुनावों में इसी वजह से कांग्रेस-RJD के बीच आर-पार जैसी लड़ाई दिखी. नए कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू को इस चैलेंज से भी निपटना है.
Posted by Dilip Pandey
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