Posted by Dilip Pandey
पाथरडीह चासनाला बीएसएल कोलयरी के डीप माईनस में 27 दिसंबर 1975 में हुए खान दुर्घटना को याद कर आज भी रूह कांप जाती है इस घटना के याद में प्रत्येक साल शहादत वेदी पर पीड़ित परिजन ,नेतागण, विभिन्न समुदाय ,प्रबंधन श्रद्धासुमन अर्पित करतेl है।वही शाहदत दिवस मनाने को ले कर सेल प्रबंधन शहादत स्थल को साफ सफाई रंगरोगन करवाने में जुटी है
1975 में हुए चासनाला खान दुर्घटना में 375 जल समाधि ले ली थी।
बताते चले कि चासनाला सेल खान दुर्घटना एशिया की सबसे बड़े खदान हादसों के तौर पर इतिहास के पन्नों में काला अध्याय के रूप में लिखा गया है। 27 दिसम्बर 1975 को भारत के इतिहास के सबसे बडी़ खान दुर्घटना धनबाद से 20 किलोमीटर दूर चासनाला में घटी, सरकारी आँकडों के अनुसार लगभग 375 लोग मारे गये थे। चासनाला कोलियरी केपिट संख्या 1 और 2 के ठीकऊपर स्थित एक बडे़ जलागार (तलाब) में जमा करीब पाँच करोड़ गैलन पानी, खदान की छत को तोड़ता हुआ अचानक अंदर घुस गया ओर इस प्रलयकालीन बाढ़ में वहां काम करे, सभी लोग फँस गये। आनन-फानन में मंगाये गये पानी निकालने वाले पम्प छोटे पर गये, कोलकाता स्थित विभिन्न प्राइवेट कंपनियों से संपर्क साधा गया, तब तक काफीं समय बीत गया, फँसें लोगों को निकाला नहीं जा सका। कंपनी प्रबंधक ने नोटिस बोर्ड में मारे गये लोग की लिस्ट लगा दी। उस समय केन्द्र और राज्य दोनो जगह स्त्ताधारी कांग्रेस का अधिवेशन चंडीगढ में चल रहा था। जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रा गांधी , बिहार के मुख्यमंत्री डा जगन्नाथ मिश्र, खान मंत्री चंद्रदीप यादव, श्रम मंत्री रघुनाथ राव आदिभाग ले रहे थे। खान दुर्घटना की बात आग के तरह फैली, तब के देश विदेशों के अखबारो व समाचार तंत्रो ने प्रश्नों की बोछार कर दी। इधर चासनाला में पीडि़त परिवारजन और दुखी धनबाद वासीयों की हिंसा की आंशका से जिले के आरक्षी आधीक्षक तारकेश्वर प्रसाद सिन्हा तथा उपायुक्त लक्ष्म्ण शुक्ला ने स्वंय कानुन व्वस्था की कमान संभाल ली थी और कोई अप्रिय घटना नहीं घटी।
चासनाला खान दुर्घटना पर काला पत्थर फ़िल्म बना था ।3
चासनाला की घटना पर कई वर्षों के बाद काला पत्थर नामक फिल्म भी बनी। यह फिल्म काफी मशहूर हुई थी। जो 1979में बनी हिंदी भाषा की फ़िल्म है इस फ़िल्म की कहानी धनबाद में 1975 के चासनाला खान दुर्घटना से प्रेरित थी इस दुर्घटना में सरकारी आकड़ो के अनुसार 375 लोग मारे गए थे
मृतकों की पहचान बैटरी वाली बत्ती नम्बर टोपी से हुई थी
कई साल तक जांच में पता चला कि अधिकारियों की लापरवाही से दुर्घटना हुई थी। खदान में रिसने वाले पानी को जमा करने को यहां बड़ा बांध बनाया गया था। हिदायत दी गई थी की बांध के 60 मीटर की परिधि में ब्लास्टिग नहीं की जाए, लेकिन अधिकारियों ने इन निशानों को नजरअंदाज कर हैवी ब्लास्टिग कर दी। इसी लापरवाही की वजह से 375 खनिकों ने जल समाधि ले ली। दुर्घटना के बाद कई महीनों तक खदान से पानी निकालने का कार्य हुआ। इसमें पोलैंड, रूस के वैज्ञानिकों से भी मदद ली गई थी चासनाला में हुई खान दुर्घटना के बाद महीनों तक पानी में रहने के कारण शव सड़ चुके थे। ज्खदान से शव निकालने के बाद मृतक की पहचान लैंप (बैटरी वाली बत्ती), टोपी, कपड़े आदि से की गई थी। कई माह तक दामोदर नदी के किनारे शवों का अंतिम संस्कार चलता रहा।
न्यायाधीश एस एन सिन्हा ने की थी खान दुर्घटना की जांच
दुर्घटना की जांच न्यायाधीश एस एन सिन्हा को सौंपी गई थी। जांच में सुरक्षा नियमों की अनदेखी करने का मामला सामने आया था। इस रिपोर्ट को श्रम विभाग को सौंप दिया गया। तत्कालीन परियोजना पदाधिकारी, प्रबंधक, सेफ्टी अधिकारी व अन्य अधिकारी को दुर्घटना के लिए दोषी मानकर बर्खास्त कर दिया गया था।


