किसानों ने सीओ से की बालू उठाव पर रोक लगाने की मांग बालू उठाव करें बंद,नहीं तो होगा आंदोलन


जमुई से सरोज कुमार दुबे की रिपोर्ट










जिले भर मे विगत वर्ष मानक को दरकिनार कर बरनार नदी से बेतरतीब बालू का उठाव किया गया, लिहाजा क्षेत्र के लोगों ने इसका दुष्प्रभाव भी देखा। अब एक बार फिर नए सिरे से नदी के विभिन्न घाटों से बालू उठाव की तैयारी की जा रही है।बालू उठाव के लिए नदी में बड़ी-बड़ी मशीनें उतर चुकी हैं जिनको देखकर क्षेत्र के किसानों का कलेजा कांपने लगा है।उनके चेहरे पर निराशा के बादल छा गए हैं। भविष्य की स्थिति के अनुमान से ही किसान सहम गए हैं। सरकार के इस निर्णय से आने वाले समय में उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न होगी। लिहाजा शुक्रवार को क्षेत्र के दर्जनों किसानों ने अंचलाधिकारी को आवेदन देकर तत्काल बालू उठाव पर रोक लगाने की मांग की है। मुखिया रेखा देवी द्वारा अनुशंसित बमभोला राय, विजय कुमार राय, बमबम पांडेय, अरविंद पांडेय, दीपक मिश्रा, अमित वर्मा, संजय पांडेय, दीनानाथ सिंह, सुरेंद्र पांडेय, सुधांशु शेखर सिंह सहित दर्जनों किसानों ने हस्ताक्षर युक्त आवेदन देते हुए बताया कि बरनार नदी से बालू उठाव के कारण उन लोगों के सामने भयावह स्थिति उत्पन्न हो गई है।आगे रोजी रोजगार की समस्या उत्पन्न होगी।क्षेत्र में पेयजल का संकट होगा। किसानों ने बालू उठाव नहीं रोके जाने पर आंदोलन का निर्णय लिया है।किसानों ने बताया कि बीते साल क्षेत्र की लाइफलाइन कही जाने वाली बरनार नदी से बेतरतीब बालू उठाव ने क्षेत्र में सुखाड़ की स्थिति पैदा कर दी है। धान के बिचड़े खेतों में सूख गए हैं तो जो थोड़ी बहुत धान की रोपनी भी हुई है उन खेतों में भी दरार पड़ चुकी है। यहां तक कि नदी के तराई वाले खेतों में भी इस बार धान की रोपनी नहीं हो पाई है।इतना ही नहीं बरनार काजवे के अस्तित्व पर भी संकट उत्पन्न हो रहा है। पूर्व में ही मानक को दरकिनार कर बालू का उठाव किया गया है। अगर इस बार बालू का उठाव हुआ तो संपूर्ण क्षेत्र मरुस्थल में तब्दील हो जाएगा। बेतरतीब बालू उठाव ने अविरल बहने वाली बरनार का भूगोल ही बदल दिया है। धीरे-धीरे नदी एक नाले का रूप ले रही है और बरनार खुद प्यासी हो गई है। सूखे पड़े खेतों से किसानों की कमर टूट गई है।किसानों को आर्थिक नुकसान तो हुआ ही है वहीं मजदूर भी जीवन यापन के लिए पलायन को मजबूर हैं।खेत खाली है जिसका असर आने वाले रबी फसल पर भी पड़ेगा।प्रखंड की अधिकांश आबादी खेती पर ही निर्भर है।बालू के उठाव ने क्षेत्र के किसानों के लिए काले दिन की शुरुआत कर दी है।भूमिगत जलस्तर तेजी से नीचे जा रहा है,लिहाजा बोरिंग फैल हो रहा है।यहां तक कि बहुत से स्थानों पर चापाकल से भी पानी निकलना बंद हो गया है। अब फिर से बालू का उठाव होगा। ऐसे में किसानों को भविष्य की चिंता सताना लाजिमी है। यही स्थिति रही तो मिट जाएगा बरनार नदी का अस्तित्व बेतरतीब बालू उठाव के बाद इस साल क्षेत्र में धान की खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है।आलम यह है कि पूरे प्रखंड में तकरीबन 20 फीसद से भी कम धान की रोपनी हुई है।आगे जब बालू का उठाव होगा तो बरनार का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।किसानों ने कहा कि बालू उठाव से क्षेत्र में न केवल फसल उत्पादन प्रभावित हुआ है बल्कि पेयजल की भी समस्या प्रारंभ हो गई है।भूमि जल स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है,जिससे चापाकल से पानी निकलना बंद हो गया तो कुआं में भी पानी नहीं है। बोरिंग फैल हो रहा है।अगर इस बार बालू का उठाव हुआ तो क्षेत्र के कई गांव मरुस्थल बन जाएंगे।

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