देश में श्राद्घ पक्ष समापन के ओर है जिसमें बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि है। आओ जानते हैं इसके कारण।

देश में श्राद्घ पक्ष समापन के ओर है जिसमें बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि है। आओ जानते हैं इसके कारण।
आचार्य राज कुमार शास्त्री

गयासुर नामक असुर ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाएं। इस वरदान के चलते लोग भयमुक्त होकर पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन करके फिर से पापमुक्त हो जाते थे।


इससे बचने के लिए यज्ञ करने के लिए देवताओं ने गयासुर से पवित्र स्थान की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस जगह आगे चलकर गया बना।

दे ह दान देने के बाद गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। तब से ही यह स्थान मृतकों के लिए श्राद्ध कर्म कर मुक्ति का स्थान बन गया।

कहते हैं कि गया वह आता है जिसे अपने पितरों को मुक्त करना होता है। लोग यहां अपने पितरों की आत्मा को हमेशा के लिए छोड़कर चले जाता है। प्रथा के अनुसार सबसे पहले किसी भी मृतक तो तीसरे वर्ष (पितरो मे मिलाने के बाद)श्राद्ध में लिया जाता है और फिर बाद में उसे हमेशा के लिए जब गया छोड़ दिया जाता है। गया में पिंड दान करने के उपरांत अंतिम पिंड दान बदरीका क्षेत्र(बद्रीनाथ धाम) के ‘ब्रह्मकपाली’ में किया जाता है।


गया क्षेत्र में भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान रहते हैं। भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए ‘गदाधर’ के रूप में गया में स्थित हैं। गयासुर के विशुद्ध देह में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह स्थित हैं। अत: पिंडदान के लिए गया सबसे उत्तम स्थान है।

.पुराणों अनुसार ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- ये चारों मुक्ति के साधन हैं- गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।

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