हम सभी अपने भौतिक जीवन के लिए हर समय कर्म कर रहे हैं l अपने जीवन की उन्नति गाड़ी, बंगला, जायजाद खूबसूरत सहयोगी साथी अच्छे पुत्र पुत्रियाँ और ऐसे ही हजारों इच्छाओं की पूर्ती के लिए दिन रात मेहनत करते रहते हैं लेकिन हम यह भूल जाते हैं एक दिन यह सब हमारे हाथ से निकल जायेगा यहाँ तक की हमारा शरीर भी हमारा साथ छोड़ देगा तो क्या हम सब केवल दिखावे की जिंदगी जी रहे …सत्य तो यह है की हम शरीर नही हम इस शरीर में रहते हैं जिसे हम आत्मा य आत्म तत्व कहते हैं l अब आवश्यकता इस बात की है कि जब हम अपने शरीर के लिए 24 घंटे देते हैं तो अपने आत्मा तत्व के लिए क्या कुछ समय नही दे सकते हैं तो आवश्यकता है सही पूजा पाठ और योग की क्यूंकि अगर हम ये सब कर भी रहे हैं तो यूँ ही दुनिया की देखी में और आपस में सबकी नक़ल जैसा जिसका मरने के बाद शायद ही कोई फायदा हमें प्राप्त हो इसलिए पराशक्ति मंत्र योग जानकर कम से कम हमें आध्यात्मिक जीवन की यात्रा तो शुरू करनी ही चाहिए अब सब आप पर निर्भर करता है की भविष्य की तैयारी करनी है या यूँ ही दिखावटी जीवन जीते जीते नष्ट कर लेना है और बिना कोई आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त किये बिना संसार से विदा ले लेनी है सोचिये ……
दीक्षा से लाभ
मोहरूपी अंधकार के नष्ट हो जाने पर सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति करके साधुजन राग-द्वेष की निवृत्ति से सम्यक्चारित्र को प्राप्त कर लेते हैं अर्थात् अनंत संसार को वृद्धिंगत करने वाली मोह मदिरा को पीकर यह जीव अनादिकाल से संसार की चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण कर रहा है। आत्मकल्याण के इच्छुक वही जीव जब मिथ्यात्वयुक्त मोह को घटाकर सम्यक्त्व क्रियाओं सहित चारित्र को गुरु के समीप धारण करते हैं, तब दीक्षा की प्रक्रिया आरंभ होती है।मोक्ष के लिए आकांक्षा सभी मनुष्यों का जन्म अधिकार है। शास्त्रों का कहना है कि भगवान द्वारा निर्मित जैविक साम्राज्य में तीन घटनाएं बेहद दुर्लभ हैं। एक – जीवित प्राणियों की असंख्य प्रजातियों में मानव के रूप में पैदा होना; दो – बंधन से मोक्ष के लिए एक मजबूत आकांक्षा और तीन – आध्यात्मिक अध्यापक और अभिभावक (गुरु) का संरक्षण। एक सच्चे गुरु के साथ संपर्क में आना और शुरू करने की इच्छा जीवन के सबसे महान आशीर्वाद हैं।
• गुरु दीक्षा लेने एवं उनके दिए हुयें मंत्र का नियमित जाप करने से बहुत से लाभ होते है |
• शब्द ही ब्रह कहा गया है और मंत्र में भी बहुत ही श्रेष्ठ शब्दों का उपयोग किया जाता है |
• इसलिए दीक्षा लेने के बाद जो नीचे लिखे नियमो का सही ढंग से पालन करते है उससे ही व्यक्ति अधिकतर बुराईयों से बच जाता है |
• जिससे की उसका आचरण–व्यहवार, खान–पान सात्विक हो जाता है और वह अनेक प्रकार के रोगों एवं अधर्म से बच जाता है |
• उसका शारीरिक विकास होता है और यही मानव का पहला धन है “निरोगी काया” और जब मंत्र जाप करते है तो उससे मानसिक आत्मिक शांति बढती है जिससे बौद्धिक बल बढता है |
• सभी बुराईयों से दूर होने पर आर्थिक बल बढता है |
इसलिए ऋषि मुनियों ने मंत्र में कहा है :
धर्मार्थकाम मोक्षाणां सद्ध्य: सिद्धिर्भवेन्न:
मंत्र दीक्षा से हमारे चारो पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते है |
नियम:
नियम 1: कभी भी गुटका, तंबाकू, शराब आदि और व्यसन न खाएं और कभी दुर्व्यवहार न करें।
नियम 2: सबसे पहले एक सब्जी छोड़ना है। कभी गुरु की निंदा न करें और हमेशा उसकी आज्ञाओं का पालन करें।
नियम 3: ऑनलाइन वीडियो द्वारा कान में गुरु मंत्र को सुनो और बताये गयी विधि की तरह संकल्प लो ।
नियम 4: गुरुमन्त्र को किसी को भी नहीं बताना चाहिए (जैसेउसके माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-भाई आदि)।
नियम 5: हर सुबह और शाम को, बैठकर गुरु मंत्र को नियमित रूप से कम से कम 5 मिनट या 1 माला के लिए नियमित रूप से जप करना जरूरी है।
नियम 6: हर समय, हमेशा गुरु मंत्र का जप करते हैं, हर पल में हर जगह।
नियम 7: किसी भी परिस्थिति में मंत्र मंत्र को मत छोड़ो जैसे कि किसी की मौत, या स्त्री धर्म आदि। ध्यान, पूजा, पूजा, मंत्र मंत्र न छोड़ें।
नियम 8: एक वर्ष में एक बार, गुरु-पूर्णिमा के समय या गुरु द्वारा बुलाए जाने पर कम से कम एक बार गुरुजी के आश्रम पर जाएं।
नियम 9: किसी भी खुशी या त्यौहार के अवसर पर, गुरु को गुरु भाग के रूप में एक दक्षिणा दें। इसे पवित्र दान भी कहते हैं क्यूंकि यह गलत तरीके से कमाए धन को भी शुद्ध करता है
नियम 10: सभी मनुष्यों से प्यार करो और अपने गुरु के साथ कभी नहीं छोड़ें।
नियम 11: जो लोग भी शाकाहारी भोजन नही खाते हैं उन्हें राजसी पूजा का ही संकल्प लेना होगा सात्विक का नहीं
संकल्प लेते समय इस प्रकार से कहे – हे माँ सांसारिक आवश्यकताओं, पारिवारिक बन्धनों और परिस्थितियों के अनुकूल न होने कारण आपकी सात्विक पूजा नहीं कर सकती/सकता हूँ इसलिए अपने इस साधक/साधिका पुत्र/पुत्री को राजसिक साधना करने की अनुमति प्रदान करे l
किसी भी एक सब्जी को छोड़ सकते हैं ज्यादातर वही सब्जी छोड़ते हैं जिसे हम खाना पसंद नही करते हैं न्यास विधि पहली बार लाल वस्त्र और लाल आसन पर बैठकर घर के मंदिर में कर सकते हैं, पहली बार न्यास विधि पूरी करे बाद में अगर समय का अभाव है तो ऋशिन्यास जरूर करे बाकि छोड़ सकते हैं इसे मंत्र से पहले करना जरुरी होता है ,