महुआंडा़ड डिपाटोली में इमाम बाड़ा के समीप दिन मंगलवार बाद नमाज इशा जश्ने ईद मिलाद-उन-नबी को लेकर अजीमुश्शान जश्ने आमदे मुस्तफा जलसे का प्रोग्राम रखा गया का आयोजन किया गया।यह जलसा इशा नमाज के बाद फ़ौरन शुरू कर दिया गया।मंच का संचालन बाहर से नकीबे अहले सुन्नत गुलजार अंबर झारखंडवी के द्वारा बहुत ही खुबसूरत अंदाज़ में किया गया। जिसके बाद नात व तकरीर का सिलसिला प्रारंभ हो गया। मौके पर
शायरे इस्लाम जनाब शफात मंज़र लोहरदगवी, शकलैन हैदर पलामूवी, शयदा पलामूवी रांची,कारी नुरूल होदा, मोहम्मद एजाज अहमद के द्वारा बहुत ही खुबसूरत अंदाज़ में हुजूर के शान में नात पढ़ी गई। वहीं हुजूर की सिरत व शुरत पर जनाब मोहम्मद इनआमूल क़ादरी रब्बानी अलीमी
जामा मस्जिद के मोहतमिम मुफ्ती मोहम्मद शब्बिर सहर कादरी,मस्जिदें गौसिया से कारी मुन्नवर सईद, के द्वारा बयान किया गया।सभी ने कहा कि हम सभी को हुजूर के बताए रास्ते पर चलना है।इसी में कामयाबी और कामरानी है। इन्हीं के सदके चांद को चांदनी मिली सुरज को रौशनी मिली मगरिब से लेकर मशरिक तक खुशिंया ही मिली।अगर अल्लाह को हुजूर को पैदा फरमाना नहीं होता तो ये दुनिया भी कायम नहीं होती।आप के पैदा होने के बाद ही इंनशानयत में इंतकाल बरपा हुआ।जानी दुश्मनों को आपने भाई भाई बनाया।और पुरी दुनिया को प्यार व मोहब्बत का पाठ पढ़ाया। मां बाप के हुकूक बीबी बच्चों व पड़ोसियों के हुकूक कायम किया। इंसान तो इंसान जानवरों तक को उनका हक देने की तालिम दी। बल्कि यहां तक फ़रमाया कि एक बिल्ली भी तुम्हारी लापरवाही के वजह से तकलीफ में पड़ जाए तो तुम्हारा ठिकाना भी जहन्नम हो सकता है।और अगर तुमने एक प्यासे कुत्ते को भी पानी पिलाया तो जन्नत जाने का जरिया बन सकता है। इसी लिए इस्लाम में इंसानों को खिलाने और पिलाने फर और उनके जरूरत के समय काम आने पर इस्लाम ने बहुत जोर दिया है।इसी लिए नबी ए करीम ने जाता और धर्म को नज़र अंदाज़ करते हुए हर जरूरतमंद इंसानों की जरूरत पुरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।जैसा कि रिवायत है एक मजबूर औरत जिसके पास पहनने का कपड़ा तक नहीं था वह अपने बेटे को आपके बारगाह में कपड़े के लिए भेजती है लेकिन साथ ही यह ताकिद भी करती है कि अगर वे तुम्हें इस्लाम की भलाई बता कर इस्लाम कुबूल करने के लिए कहें तो हरगिज ना करना कपड़ा दें या ना दें। लिहाजा जब वह लड़का आपके बारगाह में कपड़े का सवाली बन कर जाता है तो आपने उसका जात धर्म तो दूर की बात आपने नाम तक नहीं पुछा और उसके जरूरत के मुताबिक कपड़े देकर रवाना फ़रमाया।जब वह लड़का कपड़े लेकर मां के पास पहुंचा तो मां ने पूछा कहीं तुमने इस्लाम तो कुबूल नहीं कर लिया उन्होंने तुम्हें मुसलमान तो नहीं बना दिया। क्योंकि मिलने वालों को वे पता नहीं क्या करते हैं कि सब मुसलमान होते जा रहे हैं बेटे ने जवाब दिया मां उन्होंने ने हमें मुस्लमान नहीं किया इस्लाम के बारे में कूछ बतलाया नहीं हमारे जाता धर्म के बारे में पूछा नहीं बल्कि जरूरत सुन कर जरूरत पुरी फरमा दी। यही इस्लाम की खूबसूरती है।इस लिए कहा गया कि आप किसी कौम के लिए नहीं बल्कि पुरी दुनिया के लिए रहमत बना कर भेजे गए हैं।और आगे ओलमाओ ने फ़रमाया कि हमें इस से दर्स हासिल करना चाहिए और इनके किरदार को अपना कर इनके बताए रास्ते पर चलना चाहिए। जिसके सलातो सलाम फातिहा खानी व शिर्नि बांटी गई। मौके पर रौनकें स्टेज , मुफ्ती मोहम्मद शब्बर ज़या कादरी,कारी गुलाम अहमद रज़ा हाफिज नदीम अख़्तर, एजाज़ अहमद कादरी गुलाम सरवर फैजी कारी शमशीर रज़ा, हाफिज खुर्शीद अंजुमन कमेटी के सदस्य, इंतजामिया कमेटी के सदस्य समेत अन्य ओलमआए एकराम व दुर दराज से आए लोग शामिल थे।