हजारीबाग : 11 जुलाई : संस्कृत के श्लोक पर आधारित है प्राचीन भारतीय गणित। भारतीय गणितज्ञों के गणित को अपनाकर उसका अपना नामकरण किया है पाश्चात्य के गणितज्ञों ने। उक्त बातें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास,झारखंड के तत्वावधान में आयोजित प्राचीन भारत का गणित में योगदान विषयक एक दिवसीय वेबिनार में बतौर मुख्य वक्ता विद्या भारती वैदिक गणित के राष्ट्रीय संयोजक देवेंद्र राव देशमुख ने कही। उन्होंने कहा कि वेदांग ज्योतिष एवं उपनिषद् में नारद जी ने राशिम अर्थात गणित शिक्षा का वर्णन किया है। रामायण एवं महाभारत में गणित वर्णित है। दस के घात से आनंद से परमानंद मिलता है। आइंस्टीन जैसे गणितज्ञ ने शून्य की खोज पर भारतीय गणितज्ञों की सराहना की थी। वेबिनार में बतौर विशिष्ट वक्ता मार्खम कॉलेज के प्राचार्य डॉ बिमल कुमार मिश्र ने कहा कि भारतीय गणितज्ञों के सिद्धांतों को पाश्चात्य गणितज्ञों ने अपना नामकरण किया है, जो प्रचलित है। इसकी जानकारी युवा पीढ़ी को होनी चाहिए कि हमारे ऋषि-मुनियों कि जो गणित में पकड़ थी, उसे ही पाश्चात्य गणितज्ञों ने वर्णित किया है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार मयूर के ऊपर शिखा, नाग के ऊपर मणी का स्थान है, उसी प्रकार वेद के ऊपर गणित का स्थान है। उन्होंने कहा कि पाइथागोरस का सिद्धांत वस्तुतः भारतीय ऋषि मुनि बौद्धायन का ही सूत्र है। पाइथागोरस का सिद्धांत 570- 490 बीसी एवं बौद्धायन का सूत्र 800- 440 बीसी पूर्व में वर्णित है। बौद्धायन ने लंब वर्ग जमा आधार वर्ग को कर्ण वर्ग सिद्धांत दिया , जबकि भारतीय ऋषि मुनि कात्यायन ने रूट टू का सूत्र दिया। भारतीय गणितज्ञों के पाई मानक को 17 वीं शताब्दी में विलियम जोंस ने नामकरण दिया। पाई मानक का पाश्चात्य गणितज्ञों पर नामकरण करना सोचनीय है। प्राचार्य ने भारतीय गणितज्ञ लीलावती एवं भास्कराचार्य के सूत्र को पाश्चात्य गणितज्ञ ने दूसरे रूप में दर्शाया। बौद्धायन ने ज्यामिति में सुलभ सूत्र दिए हैं। सिंधु नदी के किनारे बसे लोग हिंदू थे, जो गणित के नियमों को कई वर्ष पूर्व से जानते थे। भारतीयों की काजोरी लिपि बाएं से दाएं लिखी गई है, जिसे ही बाद में अरबी लिपि में दाएं से बाएं लिखी गई है। प्राचीन भारतीय गणितज्ञों का रेखागणित एवं बीजगणित में विशेष जानकारी थी तथा उन्हें दशमलव के 32 अंकों तक की जानकारी थी। भास्कराचार्य ने कैलकुलस की चर्चा की थी। पाश्चात्य गणित प्राचीन भारतीय गणित पर आधारित है। आज जरूरत है प्राचीन भारतीय गणितज्ञ एवं उनके योगदान को युवा पीढ़ी के सामने लाने की। अपने अध्यक्षीय संबोधन में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ एजी सहाय ने कहा कि पहले भारतीय गणित को पाश्चात्य गणितज्ञों ने विदेश ले गया तथा बाद में उसी को अपना नामकरण देकर हमारे देश में भेज दिया। भारतीय गणित को पश्चिमी गणितज्ञों ने हरण किया है। प्रांत सह प्रमुख राजीव रंजन ने विषय प्रवेश में भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट एवं रामानुजम की चर्चा करते हुए कहा कि भारत ज्ञान एवं विज्ञान के क्षेत्र में अद्विती है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रांत संयोजक अमरकांत झा ने न्यास की 15 वर्ष पूर्व स्थापना की जानकारी दी। वेबिनारमें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एवं वैदिक गणित के प्रदेश प्रमुख डॉ बीके विश्वकर्मा ने अतिथियों का परिचय कराया। कार्यक्रम का संचालन हजारीबाग विभाग के वैदिक गणित प्रमुख सत्येन्द्र मिश्रा एवं धन्यवाद ज्ञापन मार्खम कॉलेज के गणित के शिक्षक एसएन त्रिपाठी ने किया। इस वेबिनार में मुख्य रूप से विद्या भारती के पूर्ण कालीन कार्यकर्ता ओमप्रकाश सिंह, वैदिक गणित के प्रमुख डॉ राकेश भाटिया, डॉ रमेश मणी पाठक, रामअवतार साहू, सरला बिरला विश्वविद्यालय रांची के कुलपति डॉ गोपाल पाठक एवं कुलसचिव डॉ विजय कुमार सिंह झारखंड राय विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ पीयूष रंजन, बीएन सिंह एसएस विद्या मंदिर कोर्रा के राहुल कुमार समेत कई प्रांतों के शिक्षाविद, शिक्षक एवं छात्रगण समेत सौ से अधिक प्रतिभागीगण उपस्थित थे
यात्री सुविधा के मद्देनजर धनबाद- जम्मू तवी- धनबाद स्पेशल के परिचालन का विस्तार किया जाएगा |
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