झारखंड चुनाव: रघुवर दास की हनक कायम, अर्जुन मुंडा के सियासी कद पर सवाल
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में चार पूर्व मुख्यमंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर थी। इनमें से कुछ को जीत मिली, तो कुछ को हार का सामना करना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू पूर्णिमा साहू ने जमशेदपुर पूर्वी सीट से जीत दर्ज की, जिससे रघुवर दास की राजनीतिक हनक बरकरार रही। वहीं, अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा अपनी-अपनी पत्नियों की हार के चलते सियासी संकट में घिर गए।
रघुवर दास की बहू की ऐतिहासिक जीत
जमशेदपुर पूर्वी सीट, जो झारखंड की राजनीति में हमेशा से खास रही है, इस बार फिर चर्चा में रही। रघुवर दास, जो राज्यपाल बनने के बाद सक्रिय राजनीति से दूर माने जा रहे थे, अपनी बहू पूर्णिमा दास साहू को टिकट दिलाने और उनकी जीत सुनिश्चित करने में सफल रहे।
पूर्णिमा ने अपने पहले चुनाव में 42,000 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की। कांग्रेस के प्रत्याशी अजय कुमार को करारी हार का सामना करना पड़ा। रघुवर दास के समर्थकों का मानना है कि यह जीत उनके परिवार की राजनीतिक पकड़ और मतदाताओं के बीच उनकी लोकप्रियता को दर्शाती है।
अर्जुन मुंडा: हार के बाद बढ़ा सियासी दबाव
अर्जुन मुंडा, जो इस बार खुद चुनावी मैदान में नहीं उतरे, ने अपनी पत्नी मीरा मुंडा को पोटका सीट से भाजपा का उम्मीदवार बनवाया। पोटका सीट उनके राजनीतिक कद के कारण हॉट सीट बनी रही। अर्जुन मुंडा ने यहां पूरी ताकत झोंकी, लेकिन मीरा मुंडा को हार का सामना करना पड़ा।
मीरा की हार के बाद, समर्थकों को चिंता है कि अर्जुन मुंडा राज्य की राजनीति में हाशिये पर न चले जाएं। लोकसभा चुनाव हारने और अब विधानसभा में भी अप्रत्यक्ष तौर पर हार झेलने के बाद, उनके सियासी भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
मधु कोड़ा को भी झटका
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा, जो जगन्नाथपुर सीट से चुनाव लड़ रही थीं, इस बार हार गईं। मधु कोड़ा के राजनीतिक भविष्य के लिए यह हार बड़ा झटका मानी जा रही है।
चंपई सोरेन और रघुवर दास का दबदबा
जहां एक ओर अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा को सियासी नुकसान हुआ, वहीं झामुमो नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने अपनी सीट पर जीत दर्ज कर अपनी सियासी पकड़ को मजबूत किया। इसके साथ ही, रघुवर दास के परिवार की जीत ने यह दिखा दिया कि झारखंड की राजनीति में उनका प्रभाव अभी भी कायम है।
रघुवर दास: परिवारवाद के आरोप खारिज
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू पूर्णिमा की जीत ने राजनीतिक गलियारों में यह साफ संदेश दिया कि मतदाताओं ने परिवारवाद के आरोपों को खारिज कर दिया। रघुवर दास, जो 1995 से लगातार जमशेदपुर पूर्वी सीट से विधायक चुने जाते रहे हैं, ने अपनी बहू के जरिए इस सीट पर अपना प्रभाव बनाए रखा।
झारखंड की राजनीति में इस चुनाव ने पुराने और नए नेताओं की ताकत और कमजोरी को उजागर कर दिया है। जहां रघुवर दास और चंपई सोरेन ने अपने दबदबे को बरकरार रखा, वहीं अर्जुन मुंडा और मधु कोड़ा के लिए यह चुनाव एक बड़ा राजनीतिक झटका साबित हुआ।
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