धनबाद: 21वीं सदी में बच्चा आभासी व वचुर्अल दुनिया में जी रहा है, वो एकाकी हो गया है, उसकी सामाजिकता खत्म हो गई । सोने के समय में उचित तालमेल ना होना। वह जिद्दी हो गया है, अभिभावकों की बात नहीं सुनता । परिवार से ज्यादा दोस्तों को महत्त्व देता है, ऐसे ही अनेक सवालों से जूझ रहें अभीभावकों ने दिल खोलकर अपनी पीडा व मनोभाव साझा किये।संस्कृति द स्कूल अजमेर के एक्यूकेटिव डाइरेक्टर व प्रसिद्ध शिक्षाविद् राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत नीरज कुमार बधौतिया के साथ धनबाद क्लब में आयोजित कार्यक्रम में बडी सख्या में पहुँचें अभिभावको से वार्ता करते हुए बधौतिया ने उन्हें आश्वस्त किया कि आप, बच्चे व स्कूल ये तीनों मिलकर कार्य करेंगे तो इच्छानुरूप बदलाव अवश्य आएगा। बच्चों की बौद्धिक व शारीरिक, भावनात्मक क्षमता के विकास व उपयोग के लिए अभिभावकों को सन्देंश दिया कि अपने बच्चों को भौतिक सुखो से निकालकर कठिन परिश्रम करने के लिए प्रेरित करें।गुरूकुल व्यवस्था की तरह बच्चे को आत्म निर्मर बनने दे उन्हें अनावश्यक भौतिक सुविधा देकर उनके स्वाभाविक विकास में कठिनाई पैदा न करें। 21वीं सदी की मुख्य समस्या बच्चे की मोबाइल की लत से भी अभिभावक अत्यन्त व्यथित थे। समाधान के रूप में श्री बधौतिया ने कहा कि मोबाईल वर्तमान युग की आवश्यकता है पर इसे लत ना बनाए। बच्चों को मोबाईल की लत छुडवाने से पहले स्वयं को आत्म नियंत्रण करना होगा। घर में छोटे-छोटे नियम बनाकर बडा बदलाव महसूस किया जा सकता है | बच्चे के अच्छे कार्य करने पर मुक्त कंठ से प्रशंसा करें तो गलती करने पर उसे डांटने की बजाय उन गलतियों के दुष्परिणाम बताए और महसूस कराएँ कि आखिर वो गलत क्यों है। उम्र के हिसाब से तकनीकों का सुरक्षित प्रयोग करना सिखाएऐं। श्री ब्धौतिया ने विभिन्न रिसर्च का हवाला देते हुए अभिमावाको को समझाया कि बच्चों के सबंध में उनकी समस्या गंभीर हैं. उनका चिन्तित होना स्वभाविक है। अभिभावकों ने यह भी समस्या साझा की कि आजकल बच्चों में नैतिक पतन हो रहा है, टी.वी.. मीडिया व मोबाइल के जजाल में उलझे बच्चे अपना बचपन नहीं जी पा रहे हैं। समस्या के समाधान हेतु श्री बधोतिया ने कहा कि आज 21वीं सदी का बच्चा आपसे बहुत कुछ अपेक्षा रखता है। उसे अपने धर्म, साहित्य, संस्कृति से जोडे व अपनी सनातन सस्कृति पर गर्व महसूस करवाऐ। बच्चों के आदर्श बनने के लिए काफी हद तक आपको भी अपनी दिनचर्या मोबाइल की लत में सुधार करना होगा। जो बात बच्चों से मनवाना चाहते हैं, उसका स्वयं के जीवन में भी अनुसरण करें। बच्चों की
गलतियों पर डांट फटकार करने की बजाय यह गलतक्यों है इसे समझाने का प्रयास करेंगे, तो बच्चे विद्रोही नहीं होंगे तथा गलत वह सही का विवेक रखेंगे बच्चे यदि कोई छोटी सी भी सफलता प्राप्त करते हैं तो प्रशंसा कर बड़ी सफलता के लिए प्रेरित करने में किसी भी तरह का संकोच ना करें।
अंत में उन्होंने यह भी निवेवन किया कि प्रकृति के साथ सरल व सहज वातावरण में बच्चों को पलने-बढ़ने दें क्योंकि प्रकृति के साथ अटूट संबंध ही हमारे जीवन का आधार है, आधार से दूर रहकर बच्चे का सर्वागीण विकास कदापि संभव नहीं। उसे श्रम करने दें। आत्मनिर्भर बनाने के लिए उसे छोटे-छोटे काम स्वयं करने के लिए प्रेरित करें। बच्चों कौ निजता का ध्यान रखें। अनावश्यक हस्तक्षेप कर उसको बागी मत बनाओ, बच्चों को नियमित योग व साधना करवाएँं ताकि आत्मिक रूप से सुदृढ़ बन सके। नियमित मेडिटेशन से उसकी इच्छा शक्ति वृढ़ होगी और जिसका फायदा यह होगा कि आज के इस प्रतिस्पर्धा के दौर में वह विकट हालातों का सामना करने में सक्षम होगा। हालातों के आगे समर्पण कर टूट कर बिखरेगा नहीं बल्कि निखर जाएगा। यदि हम आज से 100-150 साल पूर्व के शिक्षाविदों जैसे रविख्वनाथ टैगोर, अरविन्दों धोष जैसे शिक्षाविदों के रिद्वान्तों को पढ़े व अपने जीवन में उतारे तो कई समस्याओं के हल मिल जाएँगें।
कार्यक्रम के अन्त में उन्होंने सभी अभिभावकों का सेमीनार में भाग लेने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया।
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