श्रोत्रिय ब्राह्मण , शोती, सारस्वत सब एक है,


श्रोत्रिय ब्राह्मण
जितने भी ब्राह्मण का परिचय आपको मिलेगा, वह स्थान या क्षेत्र विशेष से जुड़ा नाम मिलेगा , जैसे कन्नौज के कनोजिया , शाकलदीप से शाक्लदीपी, सरयु नदी पार से – सरयुपारी ,मिथिला से मैथिल , उड़ीसा/उत्कल से उत्कल ,
पर श्रोत्रिय स्थान विषयक ब्राह्मण नही है , वैदिक ब्राह्मण है जो वेदों को सुनकर आद रखते हुए वैदिक काल से पीढी दर पीढी स्मरण कर छपाई के काल तक याद रखा है ,
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चाणक्य श्रोत्रिय थे ( चाणक्य (अनुमानतः ईसापूर्व 375 – ईसापूर्व 283)महाराज नंद ने इनका काला रंग देख इन्हें आसन पर से उठवा दिया। इसपर क्रुद्ध होकर इन्होंने यह प्रतिज्ञा की कि जबतक मैं नंदों का नाश न कर लूँगा तबतक अपनी शिखा न बाँधूँगा। चाणक्य तक्षशिला(एक नगर जो रावलपिंडी के पास था- यही हिगँलाज पहाड है ) के निवासी थे।चाणक्य के शिष्य चन्द्र गुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स और एंडोकॉटस के नाम से जाना जाता है।यह चेहरा से काला था , पर दिमाग से तेज , श्रोत्रिय दिमाग से तेज होते है , इन्होने वेद पुरानो को सुनकर कण्ठथ किया वह श्रोत्रिय ब्राह्मण कहलाता है , काले होने के कारण ही नन्द शासक ने इसे भोजन से बुलाकर बाहर कर दिया था , जिसका बदला इन्होने लिया और नन्दवँश का नाश कर दिया , कई श्रोत्रिय ब्राह्मण आपको कला मिलेगा ) , बुद्ध से पहले श्रोत्रिय मगध मे आ गये थे , गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) एक श्रमण थे, श्रोत्रिय ब्राह्मण खुद भोजन बनाते है खाते है , चाणक्य यही करता था ,

श्रौत्रिय ब्राह्मण को सारस्वत ब्राह्मण भी कहते है , बिहार , बँगाल मे श्रोत्रिय, मिथिला मे सोती हरियाणा , पँजाब और दिल्ली मे सारस्वत कहा जाता है,ये वैदिक ब्रह्मण होते है और याज्ञिक भी , वेद के ऋचाऔ को ये आद कर वैदिक परम्परा को आगे बढाया है , गीता सहित वेद और कर्म काण्ड के सैकडो श्लोक मे श्रोत्रिय की चर्चा मिलती है ,
कहा जाता है कि सरस्वती माँ के हाथ से जन्म लेने के कारण ये सारस्वत कहलाऐ , सुनकर वेदो के याद रखने से इन्हे श्रोत्रिय कहा जाता है. ये हिगँलाज से चलकर काश्मीर आए वहाँ से श्री बस्ती उतर प्रदेश आऐ,यहाँ से मगध राज्य मे आए , कहा जाता है श्रोत्रिय था कि चाणक्य / कोटिल्य श्रोत्रिय ब्राह्मण था,
भगवान बुद्ध को कुश का आसन देने वाले श्रोत्रिय ब्राह्मण ही थे , जिस पर बुद्ध ने साधना पूरी की थी , यह उनके जीवनी मे लिखा है ,

आज भी गया, पटना ,जहानावाद, विहार शरीफ , नालन्दा , नवादा, मुँगेर , जमुई , गिरिडीह, धनबाद , हजारीवाग , वोकारो , पुरूलिया , मेदनीपुर खडगपुर , दुमका , देवघर , जामताडा और राँची मे इनकी पुरानी जमीनदारी दिखती है ,
कहा जाता है दरँभगा के राजा लँगट सिह श्रोत्रिय थे, राजनीति मे दामोदर पाण्डेय हजारीबाग से 1970 के दशक मे काँग्रेस के साँसद और इन्टक नेता भी थे , देवघर के रोहिनी के 1960 के दशक मे विधायक थे , इसमे गोत्र मे विवाह प्रतिबन्धित है ,

बिहार- बँगाल मे मगध से ही श्रोत्रिय जगह- जगह गये,धनवाद के खानुडीह , कोडरमा का गुमो( मेरे पिता जी का मामा घर) , हजारीवाग का दैहर – बेढना ( मेरा- परिवार ) वडा और काला जमीँदार थे ,
विवाह पँचरत्न के लेखक – फलाहारी शर्मा इसी परिवार से थे .
गया के पहाडपुर सन्डेसर शिव मन्दिर क्षेत्र का जमीन्दार श्रोत्रिय थे, , मुगल काल मे परेशानी के कारण यह परिवार सन्डेसर से 30 किलो मी दक्षिण चोपारण के दैहर गाँव मे आ गये , दैहर से बेढना , पाण्डेयबारा , नवादा , रामजीत और विरनी ( बोकारो ) … मे यह कोशिक गोत्र का परिवार फैल गया , अब देश विदेश मे श्रोत्रिय परिवार बस रहे है ,

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…..श्रोत्रिय (सोती)

विप्रेभ्योपि ददौ धीमान वेदान साड्गाननुक्रमात ।

पाठयित्वा ततो विप्रः श्रोत्रियो विश्रुति गतः ॥३॥

जो बुद्धिमान विप्र छहो अंगो सहित अध्यापन द्वारा ब्रह्मणो को वेद ज्ञान प्रदान करता था वह श्रोत्रिय (सोती) के नाम से प्रसिद्ध हुआ ॥३॥

क्रियावन्तः श्रोत्रिया ब्रह्मनिष्ठा: | स्वयं जुह्वत एकर्षि श्रद्धयन्तः | तेषामेवैता ब्रह्मविद्यां वदेत | शिरोव्रतं विधिवद्यैस्तु चीर्णम् ||२|| ….
.मुण्डकोपनिषद

अर्थ :

Those who perform the rites, who are learned in scriptures(i.e. श्रोत्रिय ब्राह्मणas), who are well established in Brahman, who offer, of themselves, oblations to the (एकर्षि)one-seer(a form of Agni) with faith, to them alone one may expound this knowledge of Brahman, (to them alone) by whom the rite (of carrying Agni) on the head has been performed(चीर्णम्) according to rule. …

मुंडकोपनिषद

श्रोत्रिय ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वह जो वेद वेदांग में पारंगत हो । वेदज्ञ ।

२. ब्राह्मणों का एक वर्तमान भेद । [को॰] ।

श्रोत्रिय ^२ वि॰

१. वेदज्ञ । वेद में पारंगत ।

२. विघेय । अनुशासनीय । वश्य ।

३. सभ्य । शिष्ट । सुसंस्कृत [को॰] ।

अन्य ब्राह्मण

ब्राह्मण (वर्ण) → ब्राह्मण समाज
प्रादेशिक प्रभेदानुसार

पंचगौड (सारस्वत · · कान्यकुब्ज · · गौड · · उत्कल व मिथिल) · · पंचद्रविड (महाराष्ट्रीय · · आंध्र तेलगु · · द्राविडी · · कानडी व गुजराथी)
महाराष्ट्रीय
(१) कोंकणस्थ · · (२) देशस्थ · · (३) क-हाडे · · (४) देवरूखे · · (५) काण्व · · (६) मैत्रायणी · · (७) सामवेदी · · (८) गोवर्धन · · (९ ) जवळ किंवा खोत · · (१०) कास्त · · (११) किरवन्त किंवा क्रमवंत · · (१२) पळशे · · (१३) सवाशे · · (१४) तिरंगुळ किंवा त्रिगर्त · · (१५) चरक · · (१६) माध्यंदिन · · (१७) जाबाल उर्फ, नार्मद · · (१८) अभीर · · (१९) सोपार · · (२०) खिस्ती · · (२१) हुसेनी · · (२२) कलंकी · ·

गुजराथी ब्राह्मण
.(१) अनावल, (२) औदीच्य, (३) बलं, (४) भार्गव, (५) भोजक, (६) बोरसाद, (७) खोवीस, (८) दधीच, (९) देसावल, (१०) गयावळ, (११) गिरनारा, (१२) गोंतीवाल, (१३) गोगली , (१४) हरसोला, (१५) जंबु, (१६) झालोरा, (१७) कंडोला, (१८) कपील, (१९) खदायता, (२०)खेडावल, (२१) मेवाड, (२२) मोढ, (२३) मोताला, (२४) नागर, (२५) नंदवाना, (२६) नंदोरा, (२७) नापल, (२८) पालिवाल, (२९) परजिआ , (३०) पुष्करणा, (३१) रायकवाल, (३२) रायस्थल, (३३) रूंडवाल, (३४) साछोरा, (३५) साजोद्रा, (३६) सारस्वत, (३७) सेवक, (३८) श्रीगौड, (३९) श्रीमाळी, (४०) सोमपुरा, (४१) सोरठिआ, (४२) तपोधन, (४३) उदंबरा, (४४) उन्बाल, (४५) वदाद्रा, (४६) वायदा, (४७) वेदांत

आंध्र उर्फ तेलगू
वर्णशालु, कमरूकुलु कर्णमक्कळु, माध्यंदिन, तैलंग, मुरकनाडु, आराध्य, याज्ञवल्क्य, कासरनाडु , वेलनाडु, वेंगिनाडु, वेदिनाडु, तैलंगसामवेदी, रामानुज, माघ्व, नियोगी.

द्राविड पोटजाती-
.ॠग्वेदी, कृष्णयजुर्वेदी, शुक्लयजुर्वेदी, सामवेदी, द्राविडअथर्ववेदी
कर्नाटिकांच्या पोटजाती-
कुमे, नागर, कोंकणी, हुबु, गौकर्ण, हविक्, तुलव, अम्मकोडग उर्फ कावेरी, नंबुद्री, पोट्टी, मुत्तडु, एलेडु, पट्टर

पंचगौड ब्राह्मणां
सारस्वत, (महाराष्ट्र ,पंजाब, सिंध, वगैरे )-श्रीकार, बारी, उर्फ बरोवी, रावणजाही शेतपाल, कुवचंद, पोखर्ण, कुडाळदेशकर, इत्यादि . कान्यकुब्ज, उर्फ कनोजी (संयुक्तप्रांत)-मिश्र, शुक्ल, दुबे, पाठक, पांडे, उपाध्ये, चोबे, दीक्षित, वाजपेयी, सर्वरिया इत्यादि.

गौड (बंगाल व बिहार)-राधाकुलीन, भंगकुलीन, वौशज, राधीयश्रोत्रीय, वरेंद्र, सत्पशती, वैदिक, अग्रधानी, मैरपोर, रपली, दैवज्ञ, मध्यदोषी, व्यासोक्त, पीरआली, इत्यादी. उत्कल (ओरिसा)-शाशनी,

श्रोत्रीय, पंडे, घातीय, महास्थान, कलिंग, इत्यादि. मैथिल-(तिर्हुत, सारण, पुरणिया नेपाळ प्रदेश), ओझा, ठाकूर, मिश्र, पूर, श्रोत्रीय, भुइहर
आधुनिक कालीन लोकगायन

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