जयपुर:इस बार जब पिंक सिटी जयपुर से उड़ान भरेंगे तो एयरपोर्ट अडाणी का होगा. क्योंकि इसका नियंत्रण भी अडाणी समूह को मिल गया है. उसने सोमवार 11 अक्टूबर से इस एयरपोर्ट का कंट्रोल एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया से हासिल कर लिया. सरकार ने अडाणी ग्रुप को ये एयरपोर्ट 50 साल के लिए लीज पर दिया है. इस तरह अडाणी ग्रुप की सब्सिडायरी अडाणी एयरपोर्ट होल्डिंग्स लिमिटेड अब देश की सबसे बड़ी एयरपोर्ट कंपनी बन गई है.जयपुर एयरपोर्ट के मिलने के बाद के पास अब कुल 7 एयरपोर्ट का मैनेजमेंट आ गया है. इससे पहले अहमदाबाद, लखनऊ, जयपुर, मंगलुरू, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट अडाणी ग्रुप को मिल चुके हैं. इस रिपोर्ट में बात करेंगे कि अडाणी को एयरपोर्ट मिलने का क्या मतलब है और ऐसे कैसे किसी एयरपोर्ट को प्राइवेट कंपनी के हवाले कर दिया जाता है.मतलब ये कि इस एयरपोर्ट पर होने वाले हर ऑपरेशन की जिम्मेदारी अडाणी ग्रुप की होगी. वही अब इस एयरपोर्ट को मेंटेन और ऑपरेट करने का काम करेगा. एयरपोर्ट के डायरेक्टर जेएस बलहारा ने सोमवार 11 अक्टूबर को अडाणी जयपुर इंटरनेशनल लिमिटेड के चीफ एयरपोर्ट ऑफिसर विष्णु झा को एयरपोर्ट की प्रतीकात्मक चाबी सौंप दी. बलहारा ने न्यूज एजेंसी को बताया कि अब जयपुर एयरपोर्ट का ऑपरेशन, मैनेजमेंट और डेवलपमेंट अडाणी समूह द्वारा पीपीपी मॉडल पर किया जाएगा. मतलब पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप. यानी एयरपोर्ट संचालन के लिए एक निश्चित रकम का भुगतान अडाणी ग्रुप भारत सरकार को करेगा और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के नियम-कायदों के हिसाब से एयरपोर्ट को चलाएगा.सरकार का मानना है कि एयरपोर्ट चलाना झंझट का काम है. ऐसे में इन्हें प्राइवेट हाथों में दिया जाए. इसके लिए सरकार बड़ी कंपनियों को एयरपोर्ट लीज पर देने के लिए बिडिंग करती है. बिडिंग मतलब नीलामी समझ लीजिए. हर एयरपोर्ट को निश्चित वक्त के लिए एक प्राइवेट कंपनी के हवाले किया जाता है. इसके बदले में एक निश्चित रकम सरकार को मिलनी होती है. वो बेस प्राइस मतलब कम से कम रकम सरकार तय करती है और फिर बिडिंग शुरू करती है. ऐसा भी नहीं है कि कोई भी पहुंच जाए बिडिंग में. इसमें शामिल होने वाली कंपनियों का भी एक प्रोफाइल होना चाहिए. मसलन एयरपोर्ट चलाने का अनुभव हो, करोड़ों का टर्नओवर हो आदि.जयपुर ही नहीं दिसंबर 2018 में भारत सरकार ने 6 अन्य एयरपोर्ट को पीपीपी मॉडल के तहत चलाने के लिए बिडिंग शुरू की थी. ये एयरपोर्ट हैं- अहमदाबाद, लखनऊ, मंगलौर, गुवाहाटी, जयपुर और तिरुवनंतपुरम. इनके संचालन के लिए दुनियाभर की कंपनियों से बिडिंग मंगाई गई. अडाणी की कंपनी जीती. मतलब उसने सबसे ऊंची बोली लगाई.प्रक्रिया की अगली स्टेज में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और अडाणी ग्रुप ने एक एग्रीमेंट साइन किया. इसे कंसेशनेयर कहा जाता है. इसमें ये तय हुआ कि अडाणी ग्रुप कितने पैसे सरकार को देगा. एग्रीमेंट के मुताबिक जयपुर एयरपोर्ट पर आने वाले हर डोमेस्टिक पैसेंजर के लिए 174 रुपए और इंटरनेशनल पैसेंजर के लिए 168 रुपए एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को दिए जाएंगे. समझौते में ये भी लिखा गया कि हर साल महंगाई और दूसरे कारणों को देखते हुए फीस रिवाइज़ भी की जाएगी. हमने मिसाल के तौर पर सिर्फ जयपुर के बारे में बताया. बाकी एय़रपोर्ट पर भी सरकार फुट फॉल या आने-जाने वाले लोगों के हिसाब से रकम तय करती है.किसी भी एयरपोर्ट से कमाई दो तरीके से होती है. एक एरोनॉटिकल सर्विस और दूसरी कमर्शियल एक्टिविटी. एरोनॉटिकल सर्विस में हवाई जहाज कंपनियों को दी जाने वाली सुविधाओं के बदले में एय़रपोर्ट चार्ज लेते हैं. जैसे जहाज में फ्यूल भरने, कार्गो सर्विस, बैगेज हेंडलिंग और ग्राउंड सर्विस के लिए एयरलाइंस को चार्ज किया जाता है. एयरलाइंस यही पैसा हमसे-आपसे वसूलती हैं. इसके अलावा एयरपोर्ट पर होने वाली कमर्शियल एक्टिविटीज़ से भी एयरपोर्ट चलाने वाली कंपनी कमाई करती है.आपने एयरपोर्ट पर कई शोरूम और दुकानें देखी होंगी. इनका किराया भी एयरपोर्ट चलाने वाली कंपनी की जेब में जाता है. हालांकि भारत में ऐसे बहुत कम एयरपोर्ट हैं जहां एयरपोर्ट चलाने वाली कंपनियां फायदे में हों. सरकार ने भी इस दिक्कत की वजह से ही प्राइवेट कंपनियों को एयरपोर्ट सौंपने का फैसला लिया है.
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