संगीत ब्रह्मांड की भाषा है और यह एकमात्र ऐसी चीज है, जिसे जीवन के किसी भी पहलू से कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता है। संगीत प्रकृति का एक अनमोल उपहार है और आजकल रोजमर्रा की ज़िंदगी में रोगों से निदान दिलाने के लिए सशक्त माध्यम के रूप में संगीत विश्वसनीय मनोचिकित्सा बन गया है। ऐसा मानना है बॉलीवुड के चर्चित सिंगर व म्यूजिक डायरेक्टर देव राठौर का। शिमला, हिमाचल प्रदेश के मूल निवासी देव राठौर 2004 से बॉलीवुड में सक्रिय हैं। टी वी फिल्म ‘कैसी ये जिंदगी’ के प्रदर्शन और ऋषभ फिल्म्स की नवीनतम प्रस्तुति ‘मिर्जापुर के जीजा’ की घोषणा के बाद से चर्चा में आये देव राठौर आधुनिक संगीत की चर्चा करते हुए कहते हैं “संगीत हमेशा से ही अच्छी कविता, अच्छी धुन और अद्भुत गायन का मेल रहा है। मुझे लगता है कि तीनों एक अच्छे गीत की आत्मा हैं। दुर्भाग्य से, क्या हुआ है कि दुनिया भर में संगीत ने दिशा बदल दी है और अच्छी कविता और माधुर्य का अभाव है। मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि हम न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जहां संगीत युवा-उन्मुख हो गया है। आज हम जो सुन रहे हैं, वह बॉलीवुड में हो या कहीं भी, न तो माधुर्य है और न ही कविता। मुझे लगता है कि देर-सबेर अच्छे संगीत का स्वर्ण युग वापसी करेगा”। संगीत की महत्ता उद्भव और विकास की विस्तृत चर्चा करते हुए देव राठौर कहते हैं “आरंभिक काल से ही दुनिया भर में सभी संस्कृतियों में संगीत का समान मूल्य और महत्व है और संगीत के रंग के बिना कोई भी सभ्यता कभी भी अस्तित्व में नहीं रही है। संगीत एक दिव्य ध्वनि है और इसका सीधा संबंध हमारे तत्वमीमांसा से है। उपमहाद्वीप के संगीत को तकनीकी रूप से ‘शास्त्रीय संगीत’ या हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत कहा जाता है। यह दुनिया का पहला और बहुत प्राचीन संगीत है। उपमहाद्वीप का संगीत 1500 ईसा पूर्व से अधिक पुराना है और इसे पहली बार हिंदू धार्मिक ग्रंथ “सामवेद” में साहित्य के रूप में लिखा गया है।
भारतीय सिनेमा में ग़ज़ल को स्थान दिए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए देव राठौर पुनः कहते हैं
सिनेमा ने पूरी तरह से करवट ले लिया है। एक समकालीन स्वाद के साथ फ़िल्म मेकिंग का स्वरूप बदल गयाहै। कॉरपोरेट सेक्शन के बंदिशों के आगोश में फिल्म निर्माताओं की आज़ादी समाप्त हो गई है इस कारण फिल्मों की मार्केटिंग टफ हो गई है। हमारे पास हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू के स्पष्ट मिश्रण के साथ तथाकथित कॉलेज फ्लिक्स का मिश्रण है। कोई निश्चित स्वाद नहीं है। संगीत उद्योग का पूरा परिदृश्य बदल गया है। यह जितना जोर से होता है, उतना ही लोकप्रिय होता है। ग़ज़ल ने सिनेमा में अपनी जगह खो दी है। हिंदुस्तानी संगीत जितना अंतरराष्ट्रीय लेबल के साथ मिश्रित है, ग़ज़ल शैली कुछ हद तक खो गई है। हमें ऐसे फिल्म निर्माताओं की आवश्यकता है जो ग़ज़ल को उसके रूप में वापस लाने के लिए अपने सोच में परिवर्तन लाते हुए सार और अर्थ पर अधिक ध्यान केंद्रित करें।
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) सहित कई देशों में म्यूजिकल प्रोग्राम कर चुके सिंगर व म्यूजिक डायरेक्टर देव राठौर दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले ‘दूर किनारे मिलते हैं’, ‘कैसी है ज़िंदगी’ और ‘शायराने वतन’ जैसे कई धारावाहिकों के लिए ग़ज़ल, भजन और गीत गाए हैं और हाल ही में उन्होंने कोविड संकट काल के दौरान भी ओध ली म्यूजिक कंपनी के लिए 20 ग़ज़लें और आरडीसी बैनर के तहत सौ से अधिक गाने गाए और बच्चों के लिए गीत संगीत की रचना की। अभी हाल में ही श्वेता पिक्चर्स के बैनर तले बन रही फिल्म ‘गंगातट’ के लिए एक गीत ‘तन छू लो ना मन छू लो ना….’ अपने स्वर व संगीत में देव राठौर रिकॉर्ड कर चुके हैं। निर्माता निर्देशक ललित कुमार आर्या की नवीतम प्रस्तुति ‘ गंगातट’ के लिए कथा संवाद व गीत मधु राज मधु ने लिखा है। पठकथा मधु राज मधु ,डॉ अमर बहादुर पटेल व प्रोफेसर शशिकला पटेल ने तैयार किया है। इस फिल्म के सिनेमेटोग्राफर बी लक्ष्मण, एडिटर राजेश लाल, प्रोडक्शन कंट्रोलर संजय आर्या व सिद्धार्थ आर्या और प्रचारक काली दास पाण्डेय हैं। इस फ़िल्म में सुरेंद्र पाल सिंह, हिमानी शिवपुरी, राज प्रेमी, सुमन गुप्ता, प्रियंका उपाध्याय, शिवेश तिवारी, आदित्यान्श, अनुराग आर्या, अर्पित और राजेंद्र तिवारी की मुख्य भूमिका है।
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय
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