आईएएस अधिकारी नियाज खान मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस है। राज्य प्रशासनिक सेवा में चयनित हुए और वर्ष 2015 में प्रमोट होकर आईएएस बने हैं। इन्होंने एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम “ब्राम्हण द ग्रेट” है। इन्होंने इस पुस्तक में लिखा है कि ब्राह्मणों का आईक्यू ज्यादा होता है इसलिए इनका सम्मान होना चाहिए। अब तक नियाज खान ने 7 पुस्तकें लिखी है तथा हिंदू धर्म में अधिक रूचि होने के कारण इन्होंने “ब्राह्मण द ग्रेट” लिखी। दुनिया भर के हर रिलीजन में ब्राह्मण होते हैं बस उनके नाम अलग-अलग होते हैं। पादरी, बिशप, पोप ईसाइयों के ब्राम्हण हैं। मौलाना, मौलवी मुसलमानों के हैं। बौद्धभिक्षु बौद्धों हैं। हर रिलिजन में ब्राह्मण सबसे ज्यादा सम्मान प्राप्त करते हैं। जो बात हिंदू धर्म के ब्राह्मणों को दूसरों से अलग करती है वह है ज्ञान का स्तर। बाकी का ज्ञान केवल उनकी धार्मिक बातों तक सीमित होता है। अधिकांश एक किताब वाले हैं, हिंदू धर्म वालों के पास तो पूरी पुस्तकालय हैं। हिंदू धर्म का ब्राह्मण ज्ञानी इसलिए नहीं होता कि वह ब्राह्मण है बल्कि इसलिए होता वह ज्ञानी होता है क्योंकि हिंदू धर्म में ज्ञान का महासागर है। हमारे वेदों में जितनी चीजें दी गई हैं अगर उसे कोई पढ़ ले तो उसे बड़ा गणितज्ञ, ज्योतिषी, डॉक्टर, योद्धा, वैज्ञानिक कोई नहीं बन सकता। तो यही कारण है कि हिंदू धर्म का ब्राह्मण ऑलराउंडर होता है। हर क्षेत्र में अपना परचम लहराने वाला एक ब्राह्मण होता है। ब्राह्मण अपनी बुद्धि के वजह से देश की रक्षा सदियों से करते आ रहे हैं। वह चाणक्य हो, वीर सावरकर हो या शंकराचार्य हो। मुगल वंश के शासन के समय अगर वे युद्ध में सफल हो जाते तो वजन करते कि कितना किलो जनेऊ प्राप्त हुआ। अब प्रश्न आता है कि ब्राह्मणों का कर्म क्या होता है? धार्मिक रूप से देखा जाए तो ब्राह्मण वही है जो परोपकारी हो, ज्ञानी के साथ-साथ समाज में सम्मान के नजरिए से देखा जाता हो, हमारी प्रकृति को बिना हानि पहुंचाए अपना काम करें, बिना गलती किए हुए निर्दोष को कभी दंड ना दे, धर्म का सम्मान करने वाला हो, यह सब गुण जिसके अंदर होता है वह ब्राह्मण कहलाता है। यदि कोई व्यक्ति किसी सामाजिक कार्य में अभी रुचि रखता है तो वह हिंदू कहलाता है मगर वह यज्ञ अनुष्ठान करवाने के साथ-साथ पूजा पाठ करवाने वाला हो तो वह ब्राह्मण “पंडितजी” कहलाता है। पूर्वकाल में ब्राह्मण होने के लिए शिक्षा, दीक्षा और कठिन तप करना पड़ता था इसके बाद ही उसे ब्राह्मण कहा जाता था। गुरुकुल की अब परंपरा रही नहीं। जिन लोगों ने ब्राम्हणत्त्व अपने प्रयासो से हासिल किया था, उनके कुल में जन्मे लोग भी खुद को ब्राह्मण समझने लगे। ऋषि-मुनियों के वह संतान भी खुद को ब्राह्मण मानते हैं, जबकि उन्होंने न तो कोई शिक्षा ली, ना दीक्षा ली और ना ही उन्होंने कोई कठिन तप किया। अब तो समय यह भी आ गया है कि लोग जनेऊ का भी अपमान कर रहे हैं। जो ईश्वर को छोड़कर किसी अन्य को नहीं पूजते वह ब्राह्मण होते हैं। ब्रह्मा को जानने वाले को ब्राह्मण कहा जाता हैं। ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को है। चाहे वह किसी भी जाति के क्यों ना हो। हमारे हिंदुओं में कई ऐसे भी दलित हैं जिन्होंने ब्राम्हणत्त्व धारण कर समाज को दिशा दी। सनातन धर्म के गौरव को बढ़ावा देने का दायित्व ब्राह्मण समाज पर है। इसलिए इस समाज को अपने अपने स्थान पर कार्य करते रहना चाहिए। आजकल कुछ गलत धाराएं हमारे सनातन धर्म पर उंगली उठाने का प्रयास कर रहे हैं, इसका पूरा मुकाबला ब्राह्मणों को करना है। यह सत्य है कि हिंदू धर्म का बुनियाद वेद है परंतु आज का हिंदू सनातन वैदिक धर्म के प्रमुख ग्रंथ वेदों से दूर हो गया है। समाज को दिशा निर्देश देने वाले ब्राह्मण के घरों में भी वैदिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं रखते हैं। अगर पुस्तक मौजूद भी हो तो उसे पढ़ने वाला कोई नहीं है। विश्व में सबसे अधिक हिंदू भारत में है तथा देश में लगभग 82% लोग हिंदू हैं।
यह लेखल का निजी विचार है।
श्रीयम त्रिपाठी “आदियोगी”
छात्र नेता
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
29 तारीख को धनतेरस और 31 अक्टूबर को दीपावली : आचार्य दिलीप पाण्डेय
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